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मित्रभेद]
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आपकी सेवा में प्राणों की भेंट लेकर आए, तब तो उसके वध में कोई दोष नहीं है। यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो हम में से सभी आपकी सेवा में अपने शरीर की भेंट लेकर आपकी भूख शान्त करने के लिए आयेंगे। जो प्राण स्वामी के काम न आयें, उनका क्या उपयोग? स्वामी के नष्ट होने पर अनुचर स्वयं नष्ट हो जाते हैं। स्वामी की रक्षा करना उनका धर्म है।"

मदोत्कट—"यदि तुम्हारा यही विश्वास है तो मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं।"

शेर से आश्वासन पाकर गीदड़ अपने अन्य अनुचर साथियों के पास आया और उन्हें लेकर फिर शेर के सामने उपस्थित हो गया। वे सब अपने शरीर के दान से स्वामी की भूख शान्त करने आए थे। गीदड़ उन्हें यह वचन देकर लाया था कि शेर शेष सब पशुओं को छोड़कर ऊँट को ही मारेगा।

सब से पहले कौवे ने शेर के सामने जाकर कहा—"स्वामी! मुझे खाकर अपनी जान बचाइये, जिससे मुझे स्वर्ग मिले। स्वामी के लिए प्राण देने वाला स्वर्ग जाता है, वह अमर हो जाता है।"

गीदड़ ने कौवे को कहा—"अरे कौवे, तू इतना छोटा है कि तेरे खाने से स्वामी की भूख बिल्कुल शान्त नहीं होगी। तेरे शरीर में माँस ही कितना है जो कोई खाएगा? मैं अपना शरीर स्वामी को अर्पण करता हूँ।"

गीदड़ ने जब अपना शरीर भेंट किया तो बाघ ने उसे हटाते हुए कहा—"तू भी बहुत छोटा है। तेरे नख इतने बड़े और