पृष्ठ:पंचतन्त्र.pdf/६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
६०]
[पञ्चतन्त्र
 

विषैले हैं कि जो खायगा उसे ज़हर चढ़ जायगा। इसलिए तू अभक्ष्य है। मैं अपने को स्वामी के अर्पण करूँगा। मुझे खाकर वे अपनी भूख शान्त करें।"

उसे देखकर क्रथनक ने सोचा कि वह भी अपने शरीर को अर्पण कर दे। जिन्होंने ऐसा किया था उन में से किसी को भी शेर ने नहीं मारा था, इसलिए उसे भी मरने का डर नहीं रहा था। यही सोचकर क्रथनक ने भी आगे बढ़कर बाघ को एक ओर हटा दिया और अपने शरीर को शेर के अर्पण किया।

तब शेर का इशारा पाकर गीदड़, चीता, बाघ आदि पशु ऊँट पर टूट पड़े और उसका पेट फाड़ डाला। सब ने उसके माँस से अपनी भूख शान्त की।

xxx

संजीवक ने दमनक से कहा—"तभी मैं कहता हूँ कि छल-कपट से भरे वचन सुन कर किसी को उन पर विश्वास नहीं करना चाहिए और यह कि राजा के अनुचर जिसे मरवाना चाहें उसे किसी न किसी उपाय से मरवा ही देते हैं। निःसन्देह किसी नीच ने मेरे विरुद्ध राजा पिंगलक को उकसा दिया है। अब दमनक भाई! मैं एक मित्र के नाते तुझ से पूछता हूँ कि मुझे क्या करना चाहिए?"

दमनक—"मैं तो समझता हूँ कि ऐसे स्वामी की सेवा का कोई लाभ नहीं है। अच्छा है कि तुम यहाँ से जाकर किसी दूसरे देश में घर बनाओ। ऐसी उल्टी राह पर चलने वाले स्वामी