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९.

घड़े-पत्थर का न्याय

'बलवन्तं रिपुं दृष्ट्‌वा नैवात्मानं प्रकोपयेत्'


शत्रु अधिक बलशाली हो तो क्रोध को
प्रगट न करे, शान्त हो जाय।


समुद्रतट के एक भाग में एक टिटिहरी का जोड़ा रहता था। अण्डे देने से पहले टिटिहरी ने अपने पति को किसी सुरक्षित प्रदेश की खोज करने के लिये कहा। टिटिहरे ने कहा—"यहाँ सभी स्थान पर्याप्त सुरक्षित हैं, तू चिन्ता न कर।"

टिटिहरी—"समुद्र में जब ज्वार आता है तो उसकी लहरें मतवाले हाथी को भी खींच कर ले जाती हैं, इसलिये हमें इन लहरों से दूर कोई स्थान देख रखना चाहिये।"

टिटिहरा—"समुद्र इतना दुःसाहसी नहीं है कि वह मेरी सन्तान को हानि पहुँचाये। वह मुझ से डरता है। इसलिये तू निःशंक होकर यहीं तट पर अंडे दे दे।"

समुद्र ने टिटिहरे की ये बातें सुनलीं। उसने सोचा—"यह टिटिहरा बहुत अभिमानी है। आकाश की ओर टांगें करके भी

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