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१०.

हितैषी की सीख मानो

सुहृदां हितकामानां न करोतीह यो वचः।
स कूर्म इव दुर्बुद्धिः काष्ठाभ्रष्टो विनश्यति॥


हितचिन्तक मित्रों की बात पर जो ध्यान
नहीं देता वह मूर्ख नष्ट हो जाता है।

एक तालाब में कंबुग्रीव नाम का कछुआ रहता था। उसी तालाब में प्रति दिन आने वाले दो हंस, जिनका नाम संकट और विकट था, उसके मित्र थे। तीनों में इतना स्नेह था कि रोज़ शाम होने तक तीनों मिलकर बड़े प्रेम से कथालाप किया करते थे।

कुछ दिन बाद वर्षा के अभाव में वह तालाब सूखने लगा। हंसों को यह देखकर कछुए से बड़ी सहानुभूति हुई। कछुए ने भी आंखों में आंसू भर कर कहा—"अब यह जीवन अधिक दिन का नहीं है। पानी के बिना इस तालाब में मेरा मरण निश्चित है। तुमसे कोई उपाय बन पाए तो करो। विपत्ति में धैर्य ही काम आता है। यत्न से सब काम सिद्ध हो जाते हैं।

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