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मित्रभेद]
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बहुत विचार के बाद यह निश्चय किया गया कि दोनों हंस जंगल से एक बांस की छड़ी लायेंगे। कछुआ उस छड़ी के मध्य भाग को मुख से पकड़ लेगा। हंसों का यह काम होगा कि वे दोनों ओर से छड़ी को मज़बूती से पकड़कर दूसरे तालाब के किनारे तक उड़ते हुए पहुँचेंगे।

यह निश्चय होने के बाद दोनों हंसों ने कछुए को कहा—"मित्र! हम तुझे इस प्रकार उड़ते हुए दूसरे तालाब तक ले जायेंगे। किन्तु एक बात का ध्यान रखना। कहीं बीच में लकड़ी को मत छोड़ देना। नहीं तो तू गिर जायगा। कुछ भी हो, पूरा मौन बनाए रखना। प्रलोभनों की ओर ध्यान न देना। यह तेरी परीक्षा का मौक़ा है।"

हंसों ने लकड़ी को उठा लिया। कछुए ने उसे मध्य भाग से दृढ़तापूर्वक पकड़ लिया। इस तरह निश्चित योजना के अनुसार वे आकाश में उड़े जा रहे थे कि कछुए ने नीचे झुक कर उन शहरियों को देखा, जो गरदन उठाकर आकाश में हंसों के बीच किसी चक्राकार वस्तु को उड़ता देखकर कौतूहलवश शोर मचा रहे थे।

उस शोर को सुनकर कम्बुग्रीव से नहीं रहा गया। वह बोल उठा—"अरे! यह शोर कैसा है?"

यह कहने के लिये मुख खोलने के साथ ही कछुए के मुख से लकड़ी की छड़ छूट गई। और कछुआ जब नीचे गिरा तो लोभी मछियारों ने उसकी बोटी-बोटी कर डाली।