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१२.

एक और एक ग्यारह

बहूनामप्यसाराणां समवायोहि दुर्जयः।


छोटे और निर्बल भी संख्या में बहुत होकर
दुर्जेय हो जाते हैं।


जंगल में वृक्ष की एक शाखा पर चिड़ा-चिड़ी का जोड़ा रहता था। उनके अंडे भी उसी शाखा पर बने घोंसले में थे। एक दिन एक मतवाला हाथी वृक्ष की छाया में विश्राम करने आया। वहाँ उसने अपनी सूंड में पकड़कर वही शाखा तोड़ दी जिस पर चिड़ियों का घोंसला था। अंडे ज़मीन पर गिर कर टूट गये।

चिड़िया अपने अंडों के टूटने से बहुत दुःखी हो गई। उसका विलाप सुनकर उसका मित्र कठफोड़ा भी वहाँ आ गया। उसने शोकातुर चिड़ा-चिड़ी को धीरज बँधाने का बहुत यत्न किया, किन्तु उनका विलाप शान्त नहीं हुआ। चिड़िया ने कहा—"यदि तू हमारा सच्चा मित्र है तो मतवाले हाथी से बदला लेने में हमारी सहायता कर। उसको मार कर ही हमारे मन को शान्ति मिलेगी।"

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