पृष्ठ:पंचतन्त्र.pdf/७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
७२]
[पञ्चतन्त्र
 


अन्त में, मेंढक की बात मानकर सब ने मिल-जुल कर हाथी को मार ही डाला।

×××

टिटिहरी ने कहा—"तभी तो मैं कहती हूँ कि छोटे और निर्बल भी मिलजुल कर बड़े-बड़े जानवरों को मार सकते हैं।"

टिटिहरा—"अच्छी बात है। मैं भी दूसरे पक्षियों की सहायता से समुद्र को सुखाने का यत्न करूँगा।"

यह कहकर उसने बगुले, सारस, मोर आदि अनेक पक्षियों को बुलाकर अपनी दुःख-कथा सुनाई। उन्होंने कहा—'हम तो अशक्त हैं, किन्तु हमारा मित्र गरुड़ अवश्य इस संबन्ध में हमारी सहायता कर सकता है।' तब, सब पक्षी मिलकर गरुड़ के पास जाकर रोने और चिल्लाने लगे—"गरुड़ महाराज! आप के रहते हमारे पक्षिकुल पर समुद्र ने यह अत्याचार कर दिया। हम इसका बदला चाहते हैं। आज उसने टिटिहरी के अंडे नष्ट किये हैं, कल वह दूसरे पक्षियों के अंडों को बहा ले जायगा। इस अत्याचार की रोक-थाम होनी चाहिये। अन्यथा संपूर्ण पक्षिकुल नष्ट हो जायगा।"

गरुड़ ने पक्षियों का रोना सुनकर उनकी सहायता करने का निश्चय किया। उसी समय उसके पास भगवान् विष्णु का दूत आया। उस दूत द्वारा भगवान विष्णु ने उसे सवारी के लिये बुलाया था। गरुड़ ने दूत से क्रोधपूर्वक कहा कि वह विष्णु भगवान को कह दे कि वह दूसरी सवारी का प्रबन्ध कर लें। दूत