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मित्रभेद]
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ने गरुड़ के क्रोध का कारण पूछा तो गरुड़ ने समुद्र के अत्याचार की कथा सुनाई।

दूत के मुख से गरुड़ के क्रोध की कहानी सुनकर भगवान विष्णु स्वयं गरुड़ के घर गये। वहाँ पहुँचने पर गरुड़ ने प्रणामपूर्वक विनम्र शब्दों में कहा—

"भगवन्! आप के आश्रय का अभिमान करके समुद्र ने मेरे साथी पक्षियों के अंडों का अपहरण कर लिया है। इस तरह मुझे भी अपमानित किया है। मैं समुद्र से इस अपमान का बदला लेना चाहता हूँ।"

भगवान विष्णु बोले—"गरुड़! तुम्हारा क्रोध युक्तियुक्त है। समुद्र को ऐसा काम नहीं करना चाहिये था। चलो, मैं अभी समुद्र से उन अंडों को वापिस लेकर टिटिहरी को दिलवा देता हूँ। उसके बाद हमें अमरावती जाना है।"

तब भगवान ने अपने धनुष पर 'आग्नेय' बाण को चढ़ाकर समुद्र से कहा—"दुष्ट! अभी उन सब अंडों को वापिस देदे, नहीं तो तुझे क्षण भर में सुखा दूंगा।"

भगवान विष्णु के भय से समुद्र ने उसी क्षण अंडे वापिस दे दिये।

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दमनक ने इन कथाओं को सुनाने के बाद संजीवक से कहा—"इसीलिये मैं कहता हूँ कि शत्रु-पक्ष का बल जानकर ही युद्ध के लिये तैयार होना चाहिये।"