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१३.

कुटिल नीति का रहस्य

"परस्यपीडनं कुर्वन्स्वार्थसिद्धिं च पंडितः।
गूढ़बुद्धिर्न लक्ष्येत वने चतुरको यथा॥"


स्वार्थ साधन करते हुए कपट से ही काम लेना
पड़ता है।


किसी जंगल में एक वज्रदंष्ट्र नाम का शेर रहता था। उसके दो अनुचर—चतुरक गीदड़ और क्रव्यमुख भेड़िया—हर समय उसके साथ रहते थे। एक दिन शेर ने जंगल में बैठी हुई ऊँटनी को मारा। ऊँटनी के पेट में एक छोटा-सा ऊँट का बच्चा निकला। शेर को उस बच्चे पर दया आई। घर लाकर उसने बच्चे को कहा—"अब मुझ से डरने की कोई बात नहीं। मैं तुझे नहीं मारूँगा। तू जंगल में आनन्द से विहार कर।" ऊँट के बच्चे के कान शंकु (कील) जैसे थे, इसलिये उसका नाम शेर ने शंकुकर्ण रख दिया। यह भी शेर के अन्य अनुचरों के समान सदा शेर के साथ रहता था। जब वह बड़ा हो गया, तो भी वह शेर का

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