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[पञ्चतन्त्र
 


इतना निश्चित होने के बाद वे सब शेर के पास गये। चतुरक ने शेर से कहा—"स्वामी! शिकार तो कोई भी हाथ नहीं आया। सूर्य भी अस्त हो गया। अब एक ही उपाय है; यदि आप शंकुकर्ण को इस शरीर के बदले द्विगुण शरीर देना स्वीकार करें तो वह यह शरीर ऋण रूप में देने को तैयार है।"

शेर—"मुझे यह व्यवहार स्वीकार है। हम धर्म को साक्षी रखकर यह सौदा करेंगे। शंकुकर्ण अपने शरीर को ऋण रूप में हमें देगा तो हम उसे बाद में द्विगुण शरीर देंगे।"

तब सौदा होने के बाद शेर के इशारे पर गीदड़ और भेड़िये ने ऊँट को मार दिया।

वज्रदंष्ट्र शेर ने तब चतुरक से कहा—'चतुरक! मैं नदी में स्नान करके आता हूं, तू यहाँ इसकी रखवाली करना।'

शेर के जाने के बाद चतुरक ने सोचा, कोई युक्ति ऐसी होनी चाहिए कि वह अकेला ही ऊँट को खा सके। यह सोचकर वह क्रव्यमुख से बोला—"मित्र! तू बहुत भूखा है, इसलिए तू शेर के आने से पहले ही ऊँट को खाना शुरू कर दे। मैं शेर के सामने तेरी निर्दोषता सिद्ध कर दूंगा, चिन्ता न कर।"

अभी क्रव्यमुख ने दाँत गड़ाए ही थे कि चतुरक चिल्ला उठा—"स्वामी आ रहे हैं, दूर हट जा।"

शेर ने आकर देखा तो ऊँट पर भेड़िये के दाँत लगे थे। उसने क्रोध से भवें तानकर पूछा—"किसने ऊँट को जूठा किया है?" क्रव्यमुख चतुरक की ओर देखने लगा। चतुरक बोला—