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मित्रभेद]
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"दुष्ट! स्वयं मांस खाकर अब मेरी ओर क्यों देखता है? अब अपने किये का दंड भोग।"

चतुरक की बात सुनकर भेड़िया शेर के डर से उसी क्षण भाग गया।

थोड़ी देर में उधर कुछ दूरी पर ऊँटों का एक क़ाफ़िला आ रहा था। ऊँटों के गले में घंटियाँ बँधी हुई थीं। घंटियों के शब्द से जंगल का आकाश गूंज रहा था। शेर ने पूछा—"चतुरक! यह कैसा शब्द है? मैं तो इसे पहली बार ही सुन रहा हूँ, पता तो करो।"

चतुरक बोला—"स्वामी! आप देर न करें, जल्दी से चले जायं।"

शेर—"आख़िर बात क्या है? इतना भयभीत क्यों करता है मुझे?"

चतुरक—स्वामी! यह ऊँटों का दल है। धर्मराज आप पर बहुत क्रुद्ध हैं। आपने उनकी आज्ञा के बिना उन्हें साक्षी बना कर अकाल में ही ऊँट के बच्चे को मार डाला है। अब वह १०० ऊँटों को, जिनमें शंकुकर्ण के पुरखे भी शामिल हैं, लेकर तुम से बदला लेने आया है। धर्मराज के विरुद्ध लड़ना युक्तियुक्त नहीं। आप, हो सके तो तुरन्त भाग जाइये।"

शेर ने चतुरक के कहने पर विश्वास कर लिया। धर्मराज से डर कर वह मरे हुए ऊँट को वैसा ही छोड़कर दूर भाग गया।