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[पञ्चतन्त्र
 


दमनक ने यह कथा सुनाकर कहा—"इसी लिये मैं तुम्हें कहता हूँ कि स्वार्थसाधन में छल-बल सब से काम ले।"

दमनक के जाने के बाद संजीवक ने सोचा, 'मैंने यह अच्छा नहीं किया जो शाकाहारी होने पर एक मांसाहारी से मैत्री की। किन्तु अब क्या करूँ? क्यों न अब फिर पिंगलक की शरण जाकर उससे मित्रता बढ़ाऊँ? दूसरी जगह अब मेरी गति भी कहाँ है?'

यही सोचता हुआ वह धीरे-धीरे शेर के पास चला। वहाँ जाकर उसने देखा कि पिंगलक शेर के मुख पर वही भाव अंकित थे जिनका वर्णन दमनक ने कुछ समय पहले किया था। पिंगलक को इतना क्रुद्ध देखकर संजीवक आज ज़रा दूर हटकर बिना प्रणाम किये बैठ गया। पिंगलक ने भी आज संजीवक के चेहरे पर वही भाव अंकित देखे जिनकी सूचना दमनक ने पिंगलक को दी थी। दमनक की चेतावनी का स्मरण करके पिंगलक संजीवक से कुछ भी पूछे बिना उस पर टूट पड़ा। संजीवक इस अचानक आक्रमण के लिये तैयार नहीं था। किन्तु जब उसने देखा कि शेर उसे मारने को तैयार है तो वह भी सींगों को तानकर अपनी रक्षा के लिये तैयार हो गया।

उन दोनों को एक दूसरे के विरुद्ध भयंकरता से युद्ध करते देखकर करटक ने दमनक से कहा—

"दमनक! तूने दो मित्रों को लड़वा कर अच्छा नहीं किया। तुझे सामनीति से काम लेना चाहिये था। अब यदि शेर का वध