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१५.

शिक्षा का पात्र

उपदेशो न दातव्यो यादृशे तादृशे जने।


जिस-तिस को उपदेश देना उचित नहीं।

किसी जंगल के एक घने वृक्ष की शाखाओं पर चिड़ा-चिड़ी का एक जोड़ा रहता था। अपने घोंसले में दोनों बड़े सुख से रहते थे। सर्दियों का मौसम था। एक दिन हेमन्त की ठंडी हवा चलने लगी और साथ में बूंदा-बांदी भी शुरू हो गई। उस समय एक बन्दर बर्फीली हवा और बरसात से ठिठुरता हुआ उस वृक्ष की शाखा पर आ बैठा। जाड़े के मारे उसके दांत कटकटा रहे थे। उसे देखकर चिड़िया ने कहा—"अरे! तुम कौन हो? देखने में तो तुम्हारा चेहरा आदमियों का सा है; हाथ-पैर भी हैं तुम्हारे। फिर भी तुम यहाँ बैठे हो, घर बनाकर क्यों नहीं रहते?"

बन्दर बोला—"अरी! तुझ से चुप नहीं रहा जाता? तू अपना काम कर। मेरा उपहास क्यों करती है?"

चिड़िया फिर भी कुछ कहती गई। वह चिढ़ गया। क्रोध में

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