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१७.

करने से पहले सोचो

'उपायं चिन्तयेत्प्राज्ञस्तथाऽपायं च चिन्तयेत्'


उपाय की चिन्ता के साथ, तज्जन्य अपाय या
दुष्परिणाम की भी चिन्ता कर लेनी चाहिए।

जंगल के एक बड़े वट-वृक्ष की खोल में बहुत से बगले रहते थे। उसी वृक्ष की जड़ में एक साँप भी रहता था। वह बगलों के छोटे-छोटे बच्चों को खा जाता था।

एक बगला साँप द्वारा बार-बार बच्चों के खाये जाने पर बहुत दुःखी और विरक्त सा होकर नदी के किनारे आ बैठा। उसकी आँखों में आँसू भरे हुए थे। उसे इस प्रकार दुःखमग्न देखकर एक केकड़े ने पानी से निकल कर उसे कहा :—"मामा! क्या बात है, आज रो क्यों रहे हो?"

बगले ने कहा—"भैया! बात यह है कि मेरे बच्चों को साँप बार-बार खा जाता है। कुछ उपाय नहीं सूझता, किस प्रकार साँप का नाश किया जाय। तुम्हीं कोई उपाय बताओ।"

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