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मित्रभेद]
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बनिया बोला—"महाराज! उसे तो चील उठा ले गई है।"

धर्माधिकारी—"क्या कभी चील भी बच्चे को उठा ले जा सकती है?"

बनिया—"प्रभु! यदि मन भर भारी तराज़ू को चूहे खा सकते हैं तो चील भी बच्चे को उठाकर ले जा सकती है।"

धर्माधिकारी के प्रश्न पर बनिये ने अपनी तराज़ू का सब वृत्तान्त कह सुनाया।

XXX

कहानी कहने के बाद दमनक को करटक ने फिर कहा कि—"तूने भी असम्भव को सम्भव बनाने का यत्न किया है। तूने स्वामी का हितचिन्तक होते अहित कर दिया है। ऐसे हितचिन्तक मूर्ख मित्रों की अपेक्षा अहितचिन्तक वैरी अच्छे होते हैं। हितचिन्तक मूर्ख बन्दर ने हितसंपादन करते-करते राजा का खून ही कर दिया था।"

दमनक ने पूछा—"कैसे?"

करटक ने तब बन्दर और राजा की यह कहानी सुनाई—