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१९.
मूर्ख मित्र
पण्डितोऽपि वरं शत्रुर्न मूर्खों हितकारकः।
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हितचिन्तक मूर्ख की अपेक्षा अहित चिन्तक
बुद्धिमान अच्छा होता है।
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किसी राजा के राजमहल में एक बन्दर सेवक के रूप में रहता था। वह राजा का बहुत विश्वास-पात्र और भक्त था। अन्तःपुर में भी वह बेरोक-टोक जा सकता था।
एक दिन जब राजा सो रहा था और बन्दर पङ्खा झल रहा था तो बन्दर ने देखा, एक मक्खी बार-बार राजा की छाती पर बैठ जाती थी। पंखे से बार-बार हटाने पर भी वह मानती नहीं थी, उड़कर फिर वहीं बैठ जाती थी।
बन्दर को क्रोध आ गया। उसने पंखा छोड़ कर हाथ में तलवार ले ली; और इस बार जब मक्खी राजा की छाती पर बैठी तो उसने पूरे बल से मक्खी पर तलवार का हाथ छोड़ दिया। मक्खी तो उड़ गई, किन्तु राजा की छाती तलवार की चोट से दो टुकड़े हो गई। राजा मर गया।
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