पृष्ठ:पउमचरिउ.djvu/१६८

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INTRODUCTION 125 From the Rittha nemicariu. 1. The opening Kadavaka of the Riffhanemicariu. 57. सिरि-परमागम-णालु सयल-कला-कोमल-दलु। करहु विहूसणु कणे जायव-कुरुव-कुलुप्पलु॥ चिन्तवइ सयम्भु काई करम्मि हरिवंस-महण्णउ के तरम्मि॥२ गुरु-वयण-तरण्डउ लद्ध णवि जम्महों विण जोइउ को विकवि ॥ ३ णउ णाइउ वाहत्तरि कलाउ एक्कु विष गन्यु परिमोक्कलाउ॥४ तहिं अवसरें सरसइ धीरवइ करि कब्बू दिण्ण मइ विमल मइ॥५ इन्देण समप्पिउ वायरणु रसु भरहै वासें वित्थरण॥६ पिङगले ण छन्द-पय-पत्यारु भम्मह-दण्डिणे हि अलडकारु॥ वाणेण समप्पिउ घणघणउ तं अक्खर-डम्बर बप्पणउ॥८ सिरि-हरिसें णिय-णिउणत्तणउ अवरेहि मि कइहि कइत्तणउ ॥९ छड्डणिय दुवइ-धुवऍहि जडिय चउमुहें प सा पय पद्धडिया॥ १० जण-णयणाणन्द-जणेरियएँ आसीसएँ सव्वहुँ केरियएँ ॥ ११ पारम्भिय पुणु हरिवंस-कहा स-समय-पर-समय-वियार-सहा ॥ १२ ॥ घत्ता ।। पुच्छइ मागह-णाहु भव-जर-मरण-वियारा। थिउ जिण-सासणे केम कहि हरिवंसु भडारा ॥ १३ II. Colophons of some of the Sandhis of the Riţthaņemicariu. Colophon of the 1. Sandhi: 58. इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयम्भुएव-कए। पढमो समुद्दविजयाहिसेय-णामो इमो सग्गो। Colophon of the 92. Sandhi: 59. तेरह जाइक्कण्डे कुरुकण्डेकूणवीस सन्धीओ। तह सठि जुज्झकण्डे एवं वाणउदि सन्धीको।। 60. सोमसुयस्स य वारे तइया-दियहम्मि फग्गुणे रिक्खे। सिउ-णामेण य जोए समाणियं जुज्म-कर्ड व (?)॥ 61. छन्वरिसाई तिमासा एयारस वासरा सयम्भुस्स। वाणवइ-सन्धि-करणे वोलीणो इत्तिओ कालो। 62. दियहाहिवस्स वारे दसती-दियहम्मि मूलणक्खत्ते। एयारसम्मि चन्दे उत्तरकण्डं समाढतं॥

  1. 8. वरं तेजस्विनो मृत्युन मान-परिखण्डनं ।

मृत्युस्तत्क्षणकं दुःखं मान-भङगो दिने दिने। Colophon of the 99. Sandhi: 64. इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयम्भु-कए कविराज-पवल-विनिर्मिते श्री ममवसरणकथनं नाम निन्याणवो सन्धिः॥ Beginning of the 100. Sandhi: 65. काऊण पोमचरियं सुख्यचरियं च गुण-गणग्धविर्य । हरिवंस-मोह-हरणे सरस्सई सुडिय-देह व्य ।। (1) These passages are taken from Premi, 'Mahakavi Svayambhū aur Tribhuvana Svayambhu', 1942, 392-395, excepting 68, which is taken from the Poorts Ms. ot the Rigthanemicariu.