पृष्ठ:पउमचरिउ.djvu/१७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

INTRODUCTION 8 18 बजाविर तितुकण-गाहर 12816. 18 तं परमारोप्य। 8 175a. 19 पर्ण-सिकोबार सुरवर-सार, 19 पाइसंज्ञायां शिलायर्या सिंहविहरे। पशु सिंहासणे उविड भतार। 28 8. ततो जिनः सुरेशेन स्थापितः॥3 17. VP.ठविळण पडकम्बल-सिलाएसीहासणे। 2 15a. 20 पावणारम्भ-मेरि मफालिय। 24 1a. 20 ततः समाहि(!ह)ता मेर्यः । 8 178a. 21 241-8. 21. 8 166-168; 178-181. VP. 8 87-91. 22 बहु-माल-कहहि जिणवह । 22 महीभ्रमिय तं ना एम्ममधरैरिख ।

  • णव-पाउस-का,

अभिक्थ्यि। 8187. मेंहहि महिसितु महीहरु ॥ 25 9. 28 गेहेंवि बजा-सह सहसक्लें। 28 कर्णयोः कुण्डले कृते। कण्ण-जुगलु जग-गाहहाँ विवाह, तत्क्षण पुरनावेन बजासूची-विभिनयोः । कुण्डल-शुगलुसतिमाह 1262-8. 8 188. 24 तिहुमण-तिलया तिकड यवन्ते, 24 (a) तिलकेन भ्रुवोर्मध्यं xx विभूषितं । मग मासहिड ससयणेते ॥ 265. तिलकत्वं त्रिलोकस्य विनतः॥ 8200. (b) त्रैलोक्य-मजनस्वास कुतोऽन्यन्मण्डनं परम् । 8196. 25 रूवालोयमें स्वासत्ताई, 25 रूप पश्यन् जिनस्यासो सहस्रनयनोऽपि सन् । तित्ति ण जन्ति पुरन्दर-णेचई। 27 2. तृप्तिरिन्द्रो न संप्राप18174. VP. पुलयन्तो यन सिप्पड़ मच्छीण सहस्समेतण। 377b. 26 वामकर निहारवि, 26 कराह ततो न्यस्तममृतं बज्रपाणिना। वालहों तेल्धु गमिट संचारैवि ॥ 27 4. 8 221. VP. मट्ठय-अमय-हण-बलेण। 8 107a. 27 जणणिऍ जजि विदु महिसित्तउ, 27 सुरेन्द्र-पूजया प्राप्तः प्रधानत्वं जिनो यतः । रिसा भणेवि पुश रिसर्जें बुत्तड । ततः तमषभाभिख्या निन्यतः पितरो मुत ॥ 278. 8219. 28 का गलतऍ णाहु, 28 कनीयसैव कालेन परी धिमवाप सः॥ णिय-देहरिवि परिया। 2 7 9a. 3 224a. VP.(a) अणुदियह परिवहछ। 8 107a. (b) पत्तो सरीरविदि कारण अप्पेण 18 108a. 29 बम-समाहि सहुँ कीलन्तहों। 28 1a. 29 कुमार कैर्युको वयसरिननोदिते (तः) । चकारासो कीर्ग ॥3222. VP.सुरदारबपरिकियोxxकीलन्तो।8107. 80 देवदेव मुन भुक्ता-मारें। 282b. 30 तुषा-संतापितान् । 3 287b. 81तेकप्पयह सब राया। 2 8 la, माय यातासमखास्ते प्रक्षय कम्पपादपाः19287a. 82 विविगत्यु संसारपसार। 2102a. 82 एवं विगतु संसारम् । 8 266a.