पृष्ठ:पउमचरिउ.djvu/१९९

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26 PAUMACARIU नामओ भणइ । 356 णड विसह तड्पट दिवसु । 18 6 2. 356 अतिवाहमितुं नाहं प्रभवामि दिनत्रयम् । 15 125 357 जइ भजु ण लक्खिड पियाँ वयणु, 357 VP.जह तं महिन्दतणयं भज । तो कल्लऍ महु णित्तुलउ मरणु ॥ 18 6 3. न पेच्छामिxxx तो विगयजीविभो हं होहामि न एत्थ संदेहो ॥ 1554. 358 तं णिसुणे व वुषह पहसिएण, 358 एवमुक्तस्ततोऽवोचदाशु प्रहसितो हसन् । xxx वयणे पहसिएण । 1864 15 128. 359 थिय जाल-गवक्खऍ दिट वाल। 1867359 वातायन स्थिती मुक्काजालतिरोधानावानां तामपश्यताम्। 15 139. 360 एस्थन्तरें xxx चवह वसन्तमाल । 360 अत्रान्तरेxxx वसन्ततिलकाभिधा। 1871 अभाषत। 15 147. VP. एयन्तरम्मि सहिया वसन्ततिल यत्ति 1565. 361 सहल तउ माणुस-जम्मु माएँ 361 अहो परमधन्यवं सुरूपे भर्तृदारिके । भत्तारु पहाणु लडु जाएँ ॥ 1872 पित्रा वायुकुमाराय यद् दत्तासि। 15 148. VP. धनासि तुम बाले जा दिना पवणवेगस्स । 15 65. 362 सिरु विहुमॅवि भणइ वि मीसकेस । 362 भिश्रकेशीतिxxx अवदत् xxx धूत- सोदामणिपहु पहु परिहरेवि, धम्मिलपल्लवम् । विद्युत्प्रभं परित्यज्य वायो- थिउ पवणु कवणु गुणु संभरेवि ॥ गुहासि यद् गुणान ॥ 15 155. 18 7 3-4 VP. विजप्पभं पमोत्तुं पवर्ण जयं पसंससि xxx परममूढे। 15 68- 363 (8) अन्तरु गोपय-सायराहुँ 18 7 5 363 भेदो वायोर्विद्युत्प्रभस्य च xxx (b) तं विजुप्पह-पवणाया।1878 गोष्पदस्याम्बुधेश्व यः। 15 160. 364 माऍहि बालाहि कुविड णरु । 364 (8) इत्युक्ते क्रोधानलविदीपितः । थिउ xxx उक्खय-खग्ग-करु॥ 15 163. 'रिड रक्खड विहि-मि लेमि सिरई॥ (b) समाकर्षन् सायकः । 15 164. 1879. (c) लुनाम्यतोऽनयोः xxx मूर्धान- मुभयोरपि । विद्युत्प्रभोऽधुना रक्षां करोतु ॥ 15 116, VP. सोऊण वयणमेयं पवणगई रोसपस- रियामरिसो आयडर असिवर। 15 71. (b) सिराइ छिन्दामि दोह्र विजणीणं xxx करेउ विजु पहो इहई। 15 73. 365 करि-सिर-स्यणुजलिय । 18 8 2. 365 मत्तेभकुम्भदारणकारिणः । 15 173 VP. गय कुम्भदा[र]णसमन्थं। 15 75. 366 णिय-भावासहों। 1883. 366 वसतिमात्मनः। 15 177. VP. निययावास। 1577. 367 गय रयणि तासु। 188 4. 367 भागता क्षयं विभावरी। 15 185. VP. रयणी वालीणा। 1580.