पृष्ठ:पउमचरिउ.djvu/२५५

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पउमचरिउ [क०१,२-९,२,१-८ विमलेक्खुक्क बसे उप्पण्ण' धरणीधरू सुरूव-संपण्णउँ ॥२ तासु पुत्तु णामें तियसञ्जउ पुणु जियसत्तु रणङ्गणे दुजउ ॥ ३ तासु विजय महएवि मणोहर परिणिय थिर-मालूर-पओहर ॥ ४ ताहे" गब्) भव-भय-खय-गार "उप्पजइ सुउ अजिय-भडारउ ॥५

रिसहु जेम वसुहार-णिमित्तउ रिसहु जेम मेरुहिँ अहिसित्तउ ॥६

रिसहु जेम थिउ वालकीलऍ रिसहु जेम परिणाविउ लीलऍ॥७ रिसह जेम रज्जु" इ भुञ्जन्तें एक-दिवसें" णन्दणवणुजन्तें ॥८ ॥ घत्ता॥ पवणुद्ध सरु दिट्ट पप्फुलिय-सयवत्तउ । जाइँ विलासिणि-लोउ उन्भिय-करु णचन्तउ ॥ ९ 10 15 सो जि महासरु 'तहिं जे वैणालऍ दिगु जिणाहिवेण वेत्तालऍ ॥ १ मउलिय-दलु विच्छाय-सरोरुहु णं दुजण-जणु ओहुलिय-मुहु ॥२ तं णिएवि गउ परम-विसायहीं 'लइ एह जि गई जीवहो जायहो॥३ जो जीवन्तु दिडु पुघण्हएँ मो अङ्गार-पुत्रु" अवरहऍ॥ ४ जो णरवर-लक्खहिँ पणविजइ सो पहु मुअर्ड अंवारें"णिज्जइ ॥५ जिह" सञ्झाएँ एउं पङ्कय-वणु तिह जराएँ घाइजइ जोवणें ॥ ६ जीविउ जमेण सरीरु हुआसें" सत्तई काले रिद्धि विणासें" ॥७ चिन्तइ एम भडारउ जावहिं लोयन्तियहि विवोहिउँ ताहि ॥८ 9। विमलेखुक', A विनलिन्बुक'. 10 8 A उप्पण्णउं. ||1' सुरूउ. 12A संपण्ण. 18 मणोहरा. 11 ताहि, ताह. 151, गमि. 1G I'S खयकारउ. 17 This licmistic ani the whole of the next line is nuissing in s. 18 PT. 19 ( मेरहे. 201' वालाकीला, वालाकीलई. 21 लालई. 2A रजुइ with the murk of dection over इ. A एक्के.245 °दिवसि. 25 गंदणु. 26 A जेतें. 227 16 पवणधुउ, A पवणुद्धम. 28 P पफुल्लियौं, ७ पप्फुलिय', A पप्फल्लिय° (2). 29 PS णाइ. 30 उडिभयकर. 2. 1 तहि.25A जि. चेत्तालउ, A वेतालाए. 4r°दल. 5 15 विच्छाए.6 PS ओहल्लिय".7 टाई corrected to गइ. 8 जीवंतु हि. 9s पुन्वण्हइ. 10 8 °पुजु. 11 अवरोहइ. 12 लक्खहिं, 5 लक्खहि. 13 : पणमिजइ 14 मुयउ. 15 s अवारह. 16 s जिउ. 17 । एउं. 18 जोवणु. 195 हुआई, A हुयासें. 20 " सत्तइ. 21 Ps विणासइ.29 लोएंतिएहिं. 238 विवोहिंड, A पवोहिंउ. 24 तोवेहिं. [१] १ इक्षा(क्ष्वा)कुवंशे. [२] १ उद्यानगृहे. २ अस्तमन-काले. ३ क्षुल्लक-द्वारेण, उपराडौं (2) वा.