पृष्ठ:पउमचरिउ.djvu/३५२

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4.400-1001-4] सत्रहमो संघि ॥ धत्ता॥ सहसक्खु विरुज्माई किर सण्णज्झइ ताव जैयन्ते दिण्णु रहु । 'मई ताय जियन्तें सुहड-कयन्तें अप्पुणु पहरणु धरहि कहुँ ॥१० [६] जयकारेवि सुरेवई धाईओ जयन्तो । 'णिसियर थाहि थाहि कहि जाहि महु जियन्तो ॥१ वाहि वाहि सवडम्मुहु सन्दणु हउँ धव देमि पुरन्दर-णन्दणु ॥२ तीरिय-तोमर-कण्णिय-घायहुँ वहु-चावल्ल-भल्ल-णारायहुँ ॥३ अद्धससिहि खुरुप्प-सेल्लंग्गहुँ पट्टिस-फलिहँ-सूल-फर-खरंगहुँ ॥ ४ मोग्गर-लउडि-चित्तदण्डुण्डिहिं सबल-हुलि-हल-मुसल-मुसुण्डिहि ॥५ झसर-तिसत्ति-परसु-इसु-पासहुँ कणय-कोन्त-घण-चक-सहासहुँ ॥६ रुक्ख-सिलायल-गिरिवर-घौयहुँ हवि-जल-पवण-विजु-संघायहुँ' ॥७ तं णिसुणेवि सिरिमालि पहरिसिउ सुरवइ-सुअहो महारहु दरिसिउ ॥८ 'पइँ मेल्लेप्पिणु जय-सिरि-लाहवें को महु अण्णु देइ धव आहवें ॥९ ॥ धत्ता॥ तो एव विसेसेंवि छिण्णु जयन्तहों तणउ धई। गयणङ्गण-लच्छिहें कमल-दलच्छिहें हारु गाइँ उच्छलेंवि गउ ॥ १० [७] दहमुह-पित्तिएण दणु-देह-दारणेणं । मुसुमूरिउ महारहो कणय-पहरणेणं ॥१ एउ ण जाणेहुँ कहिँ गउ सन्दणु चुकंउ कह वि कह विसुर-णन्दणु॥२ दुक्खु दुक्खु मुच्छा-विहलवलु उद्विउ उद्ध-सुण्डु णं मयगलु ॥३ भीसण-मिण्डिवाल-पहरण-धरु जाउहाण-रहु किउ सय-सकर ॥४ सो वि पहार-विहुरु णिच्चेयणु मुच्छ पराइउ पैसरिय-चेयएं ॥५ सर संपेसेंवि 20 14P किह, किहा. 6. 1PS सुरवाइ. 2 धाइयउ. 3 A°घावहिं. 4 A °णारायहिं. 5 PS सेलग्गहिं. 6 PS °फलिस. 7 PS सग्गेहिं. 8P8 °दंडहिहिं. 9P8°मुसंनिहि. 10 PS पासेहि. 11 Psacraft. 12 P s ogrart. 13 P 8 of wateraf. 14 P 8 YO, A 18. 15 Ps roomfor. 7. 1 जाणहं. 2 Ps कु. 3 P8 °मिरिमाक. 4 SA °वेयशु. २ इन्द्रपुत्रेण. [७] 1 पुनर्भव-जीवितम्या.