पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/१०१

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पत्थर-युग के दो बुत
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पत्थर-युग के दो वुत जैसे अजगर को ग्राखो के ग्राकर्पण से उसका शिकार अपने-आप ही पाकर उसके मुह मे समा जाता है, ये लडकिया मुझमे समा जाती रही है। बहुतो को मै दुत्कारता हू, अपमानित करता है, परन्तु वे रो-धोकर मेरे चरणो मे गिरती हैं। यह एक नैसर्गिक आत्मार्पण है, जहा वे विवश हो जाती है, खास कर छोटी उम्र की होने के कारण। मैने ऐमी लडकिया की मनो- वृत्तिया देखी है। उनका मन न घर के काम-काज मे लगता है, न पटने- लिखने मे । वे घर के लोगो के अनुशासन को भी नहीं मानती। देवन म वे सर्वथा उदासीन और अरसिक-सी लगती । उनमे चपलता या पिनोर की मात्रा भी नही होती। वे भिन्नलिंगी की प्राप्ति के लिए नीतर । वेचैन रहती है। और इसके लिए उन्हे दोपी नहीं कहा जा मानापारि उनके रक्त के अन्दर कुछ विशेप हारमोन विशिष्ट प्रन्धिया मोट. स्वरूप मिलते रहते है। मैं ऐसी लडकियो को पहचान लता ह । कार र ही प्यासी नज़र उन्हे मेरी गोद मे ला डालती है। बहुत कम मुन्ना प्रेमाभिनय करना पडता है। बहुधा इसकी तनिक भी ग्राव यस्ता नहीं पडती। परन्तु रेखा का मामला इन सब लडकियो ने भिन्न है। यह एक विद्या- हिता पत्नी है। उसका पति उसकी वरावर की जोडी का है। वह सन्दर योर स्वस्थ है। वह उनसे पूर्णतया प्रेम करता है तथा उनी ना. सम्बन्धी आवश्यकतानो की भी पूर्ति करन समय है। भिन्त नै सिकाई भी कारण ऐसे नहीं है जो रेखा को किसी पुरुप की ग्रोर ग्रान्ति र । इनी से मेरी नज़रो का वार उसपर साली जाता रहा-7 पाव का तक। उसने मेरी पोर सेक्स-भावना से एक बार नी नाव उटर नही देखा। अपने पति की नाति ही वह अपन पनि सो पार ली । अपना-तन-मन उसने अपने पति को सम्पपरपगार दिया । स्त्री की हैसियत से नी ग्रार पत्नी की हानिपतन नी । 2. - TH या नम्बन्ध पा, वह अपने पति ने नतुष्ट की। उन दिनार रतिभाव पर । स्त्री शरीर-नवान ने नापग्नि पनि किन न