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पत्थर-युग के दो बुत
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पत्थर-युग के दो वुत उन्हे समझाता-बुझाता।" "यह सब काम तो मैंने भी किया।" "तो क्या कुछ ऐसे गम्भीर कारण या उपस्थित हुए कि तुम्ह नपतता नहीं मिली" 1 ir 17 अब मैं क्या जवाब देता। मैंने कहा, "मिस्टर दत्त, बहुत-सी बात है जो कही नही जा सकती। वूद-बूद तालाब भरता है, जग-जरा-नी प्रति- कूल वाते वहुत वजनी बन जाती है। प्रारम्भ मे सोमन कल्पनाग्रा की भावुक प्रवृत्तियो को पूजी बनाकर स्त्री-पुरप मे प्रेम-यापार चा है। पर वहुधा उन कल्पनाओ और प्रवृत्तियो के तार बीच ही मटटा' तो वह प्रेम का लेन-देन ही केवल बन्द नहीं हो जाता बिर्ग - पोरा की वौछारो को भी सहन करना पड़ता है, और ना र मे जो साहसी होता है, वह भाग खडा होता है, जाTI TITीमा' वह मर मिटता है। और सच तो यह है कि प्रेम पा जी +7 ET" है। सम्भव है, पत्थर-युग मे जव सभ्यता पा प्रारम्न पा, पनर । हो, पर अव सभ्यता के विकास ने इसे जटिल बना दिया है। मनुप्य अासानी से उसके भार को सहन नहीं पर नाता।" "क्या तुम समझते हो राय, कि स्तियो की इतनी बारा रन- के लिए हितकर है ? मै पुराने युग की कदि का ननन नही रन साधारण कारण से पति-पत्नी का विच्छेद क्या उचित है तो सम्भव है कि जो कुछ समना गया है वह जननी हो वहुधा होता भी तो ऐना ही है। परन्तु नाज नोनी.. कर नहीं रख सकते।" "परन्तु इस तरह तो जीवन ही स्तनन्न हो : एपनिष्ठता खत्म हो जाएगी।" 'हो जाए, पर व्यनि-स्वाना र नबने नदी । युग की तपते वडी नाा है।" नया तुम नह नमते हो गय, नितीन .