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पत्थर-युग के दो बुत
 

१०८ पत्थर-युग के दो बुत . रहा था और उसी भाव-प्रावल्य मे वह प्रश्न कर रहा था। अव मैंने भी गम्भीर स्वर मे कहा, "हो सकता है कि मेरी यह प्रेम-व्याख्या गलत हो, क्योकि अन्तत मैं एक विफल पति हूँ।" दत्त ने एक गहरी सास ली और कहा, "राय, ऐसा प्रतीत होता है कि सभी पति विफल पति होते है। किमी स्त्री का पति होना एक घाटे का सौदा ही है।" इतना कहकर वह उठ खडा हुआ। उसने अपनी सहानुभूति से मेरा हाथ पकडकर कहा, "भाई राय, विश्वास करो, तुम्हारे लिए मै बहुत दु खित है। समझ रहा हू कि तुमने माया के वियोग को सहन करने में अपरिसीम धैर्य का परिचय दिया है। मै अपनी कह सकता हूं कि कही यदि मुझे रेखा को इस तरह खोना पड जाए तो मै जिन्दा न रह सकूगा।" उसने मुझे नमस्कार कहा। मैने कुछ जवाब न देने ही मे कुशल समझी और प्रतिनमस्कार करके चला पाया।