पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/११३

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सुनीलदत्त ? वडी भयानक वात कही राय ने कि पाशविक प्रवृत्ति ही प्रेम परन्तु यह कैसे माना जा सकता है राय ने उमरी यारानी।। उसने कहा-स्त्रिया उसी प्रेम को पसन्द करती है जिसम नाम गा HT का भीपण पात्रमण निहित हो। परन्तु मै इन वान तीन मा चाहता हू । स्त्री-पुरुप का पारस्परिक सम्बन्ध पहने प्रेम मान । है, या काम का सम्बन्ध ? निस्स देह प्रेम का सम्बन्ध होता है । पर। काम-वासना नही छिपी रहती है, यह नहीं कहा जा सकता। 4 - 14 मैने विवाह से पूव देखा तो मन मे कैसी एक गमी - पन हमर चढ पाया हो। कितनी रातो तक मैंने उनकी कल्पना -मनि रापार किया। उस ध्यान में कितना प्रेम या और कितना नाम पहनी' सकता, अथवा मुझे कहना चाहिए, काम ही पिन वा। प्रेम तो देता है। जो जितना अधिक देता है वह जना प्रेमी है। परन्तु वाम तो एक वासना है, वह लेने की प्रका ग्राता है । कबूल करता है कि जब-जब मने रेखा का मानन मे यही हुया कि उसे म प्राप्त कर न ग्रात्मनात् न न न् । यह देना वहा हुया । लेना हो तो या। नाबाट रन प्रेम नहीं। राय ने टीम कहा-प्रेम एम पनि प्रनि पी स्मृति से मेरे मन में पागनि नेउना नही दा प्रवृत्तियो ने मुझे नहीं नर नोरता इनके बाद जब नन रेसानो पर 1 1