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पत्थर-युग के दो बुत
 

११६ पत्थर-युग के दो बुन अपने पढने के कमरे मे दरवाज़ा भीतर से वन्द करके बैठ जाती ह, या किसी सहेली के यहा चली जाती है। सिर्फ गोफर रह जाता है। वह उन्हे 'मेमसाब' कहता है। वह भी शायद उनके यहा आने का अभिप्राय जान गया है। वही तो अब उन्हे कार मे लाता है। पर उसकी नज़र मे मैं कमी एक घृणा देवती हू' छोटी जात का आदमी है, पर बुरी-भली वात को समझता है । कभी- कभी मेहतर-जमादार से उनके सम्बन्ध मे बाते करता है। मैने भी एकाच वार उनकी बाते सुनी हैं। क्या कहू, सुनकर शर्म से पानी-पानी हो जाती है । पापा की कितनी बदनामी हो रही है इस काम मे । घर के नौकर- चारो तक की चर्चा का विपय वे बन चुके है। मुझे तो अब यह असह्य-सा होता जा रहा है । उन्होने कहा था कि ने मुझे मेरी ममी की तरह ही प्यार करती है, वे मेरी ममी है। तब तो मुक भी उनकी बात अच्छी लगी थी। मै ममी की भाति उन्हें प्यार करने लगी थी। तब मुझे ममी पर गुस्सा था। पर प्रव तो देखती ह ममी नो ममी ही ह। मिसेज दत्त ममी नहीं है । जिस मतलब मे आती है उमी पर उनकी नजर है। बहुत मगब बात है यह। वैमी ही जैसी वह बात थी, तब वमा माहर ममी के पाग पाते थे। ममी पाम्बिर उनके पाम चली गर्ट। अब क्या मिमेज दत्त भी यहा पापा के पास पा रहेगी? लेकिन मैं उन्ह ममी नहीं कह सकती। वे ममी ह ही नहीं। कहा है उनकी नजर में वह प्यार और ममता जो ममी की नजर में या । अाज भी मैं उन नजर साजान कर रोती है। पापा न मुक दजाजत दी है कि म कभी-कभी गाकर ममी ने मिल नम्ती है। मननी-कनी चली जाती है। यो मेरा दिल उनके पास जाने को बहत मचता है, पर जाते हुए नकोव बहुत होता है । एक प्रकार की हर मेरे दिन मे उटती है । म अपने ही ने नडन लगती कि मुझे नहीं जाना चाहिए । पर तब मन पसार हो जाता है, की जाती ह । ममी का 'च-नोवैना ही है। स्तिनी खुशी हाती है । प्रपन मामने पिटाकर पिलाती