पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/१२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
पत्थर-युग के दो बुत
११७
 

वुत पिलाती हैं-वात करती हैं। पापा की बहुत-सी वाने पूछती हैं। उतन व्यान रखने की बार-बार हिदायते देती हैं। वर्मा माहब नी मुले कर वहुत खुश होते है। वडा प्यार दिखाते हैं । वहुधा का उपहार दन है। पढने-लिखने की बाबत पूछते हैं। और जब तक मैं बहा रहती है मनी का मेरे पास ही रहने देते है। ममी भी तो मुझे नहीं बानी | Tी भी ना मुझे ऐसा प्रतीत होता है, यही मेरा घर है । वहान पान का मन ही नही करता। वहा से लौटकर यहा बहुत नूना-सूना लगता । ग्रामिनी के पास जाने को मन होता है । मन को रोती है । बार.in रोने लगती है और फिर चली जाती है। सचमुच वही तो अमली ममी है। रमार घर । हुया ! लेकिन ये मिसेज़ दत्त भला ममी न इनमे कहा है ' नहीं-नहीं, ये ममी नही है । मैन ममी से मिसज दत्त के यहा प्रान-मान की वे पाती है। मीधी पापा के दायनागार मे चली तक नही करती है, यह भी कह दी है। उनकी प्रा. है कि उनके पाने के समय मै घर म न रह तो हो - वह दिया है। ममी सुनकर चुप हो जाती है । न दद भर जाता है, देव नही सक्ती न । जोर कभी- ममी, इन बातोपा बासिर नतीना सा होगा ते पछा-क्या मैं उनस कह द कि वे नरे पर न न पर द कि उन्हें न चुलामा परेका नगीन ‘र को उन्होंने यह भी कहा कि नगे उन्पेन' चाहता है पर पापा 1 टन रह -- "पर नहीं। 4 +