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पत्थर-युग के दो बुत
 

११८ पत्थर-युग के दो बुत . मिला उठी। डनके चेहरे पर ऐसा एक कठोर भाव आ गया जैमा मैंने पहले कभी नहीं देखा था। और जब मैं चलने लगी तो उन्होने कहा, "वेवी, मेरा एक काम कर दोगी वेटी ?" मैंने कहा, "कहो मा।" जब मैं बहुत खुश होती हू तो ममी को मा कहती हूँ। मैंने कहा, "कहो मा उन्होंने मुझे अपने सीने मे छिपा लिया कि मैं उनके ग्रासू न देख सक् और कहा, "बेटी, मेरा एक फोटो वहा सोने के कमरे मे टगा हुआ है, मुझे ला दे।" और मैंने यह फोटो उन्हे ला दिया। पापा ने मुझमे पूछा, 'वह फोटो क्या हुआ?' तो मैंने बता दिया कि ममी ने मागा या, दे पाई है। पापा कुछ बोले नहीं, चुपचाप चले गए। शायद नाराज हो गए। पापा भी तो मुझमे कम बात करते है। वे चाहते है कि जब मिसेज़ दत प्राए तो म पर मे न रहू। में भी हकीकत मे यही चाहती है। पहले ममी तर यहा यी तो उन्होने चाहा था कि मैं होस्टल मे जा रह, और मने दन्कार कर दिया था, पर अब तो मैं स्वय चाहती है। असल बात यह है कि मैं न तो मिमेज दत्त का पापा के शयनागार पर इस तरह दखल माना देय मक्ती ह्, न रोज-रोज़ उनका पाना बर्दाश्त कर सकती है। म मन ही मन घुटती रहती है। इससे मेरी स्टडी में भी हर्ग होता है। ममी से नव-जव मिसेन दत्त की बात मैंने कही, तर-तव वे चुप रही, अच्छा-बुरा कुछ कहा नही। पर म जानती ह कि यदि में मिसेज़ दत्त को अपमानित कर तो ममी खुश होगी। बहुत खराव प्रौरत हे मिसेन दत्त ।