पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/१३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दिलीपकुमार राय - , दत्त पागल हो गया है, या उसे कामोन्माद चढा है, या वह मुझ पर सन्देह करता है। अब वह हर समय काम-विकार की ही बातें करता है। कभी-कभी रेखा की बातें करता है। उन बातो मे उमका प्रबल मनोवैकल्य प्रकट होता है। उसका विनोदी स्वभाव, ठहाके मारकर हँसना, नव गायव हो गया है, न अव वह पहले की भाति गप-शप करता है। ऐसा प्रतीत होता है, दोस्ती का वह भाव भी अब उसके मन मे नही है। वह रेसा की कामवासना की, उसके मूल से आधारित वैज्ञानिक विपयो को बाते करता है। बात करते-करते कभी वह उत्तेजित हो जाता है, कभी अत्यन्त गम्भीर । वह यह भी भूल जाता है कि किससे क्या कह रहा है। न कहने योग्य वाते भी वह कह जाता है। और जव वह ये सब बातें कहता है तो एक तीखी दृष्टि से मेरी ओर देखता है। उस दृष्टि को मैं बर्दाश्त नही कर सकता। मेरी आखें झप जाती हैं, कभी-कभी मन होता है कि फोड द् उसको आखें। सच ही कह दू दत्त के प्रति मेरे मन मे अव प्रेम नहीं है। मैं अव उसका मित्र तो कैसे रह सकता ह-जब उसकी स्त्री का जार हू। सरा- सर उसे धोखा दे रहा हू । आप जो चाहे समझे, मन मे चाह उठती है- दत्त मर जाए, और रेखा सोलह आना मेरी हो जाए। अब रेखा को मुझसे छीन कौन सकता है। परन्तु दत्त की गम्भीरता वडी भयानक है। कभी-कभी तो वह सचमुच भयानक हो उठता है। क्या वह मुझ पर शक करता है ? इसी से वह इस प्रकार की बातें करता है। उसे सेक्स-सवधी पुस्तकें पढने का शौक भी बेहद बढ गया है।