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पत्थर-युग के दो बुत
 

पत्थर-युग के दो बुत मैं जानती हू, ऐसी हालत मे पुरुप उसके मनम्तन्त्र को न जानकर उसपर बलात्कार करता है। ऐमा बलात्कार ऐमी ही अवस्या मे दत्त मुझ. पर कर चुके है। और मच पूछा जाए तो उस बलात्कार ने ही मेरा मन उनकी ओर से विरक्ति से भर दिया है। मानती ह, दत्त मुझने अव भी प्रेम करते हैं। पर मैं अब यह भी जान गई हू कि कोरा प्रेम वैवाहिक जीवन को सफल नही कर सकता। प्रेम के पोपक पौर तत्त्व भी है। जैने ज़रा-से हीरे को बडे-से मखमली बक्स मे सजाकर रखा जाता है, वैसे ही प्रेमतत्त्व को व्यापक जीवनदर्शन के वडे क्षेत्र की अावश्यकता है। जो पति अपनी पत्नी के रति-प्रेम के लिए वह सुन्दर मखमली वक्म नहीं बना पाते, वे प्रेम-रत्न को आगे-पीछे कभी न कभी खो ही देते हैं। असफल विवाह मे विवाह-विच्छेद होगा ही। इन नसले पर में प्राज- कल गम्भीरता से विचार कर रही है। पहले माया के प्रति मेरे मन मे तिरस्कार का उदय हुअा था कैसे उसने अपने वाईस वर्प के वैवाहिक सम्बन्ध को भग कर दिया पर अब मैं देखती ह उन परिस्थितियो और ज़िम्मेदारियो को जो वैवाहिक जीवन को इस मोड पर ले आती है। मैं भी अब उस मोड पर पहुच गई ह । और जिम्मेदारियो तथा परिस्थितियो -जो मेरे ऊपर से गुजर रही हैं, अध्ययन कर रही है। मैं अव चाहती हू, दत्त से जल्द से जल्द मेरा विवाह-विच्छेद हो जाए, और जल्द से जल्द मेरा राय से विवाह हो जाए । भला इस चोरी-छिपी के जीवन मे क्या तुक है ? और इतनी बडी चोरी? शरीर ही का चोरीचोरा ? गैर पुरुप को समर्पण ? गज़ब है किसी दूसरी स्त्री के ऐसे आचरण को मैं कदापि बर्दाश्त नही कर सकती थी। पर अव तो मैं स्वय ही वह गर्हित आचरण कर रही है, और अपनी ही नज़रो मे गिरती जाती है। कैसे बर्दाश्त करू मैं इस जीवन को । नही, नही। यह नही हो सकता के आने से प्रथम ही सब-कुछ निर्णय हो जाना चाहिए। राय टालते है। क्यो टालते हैं भला? क्या वे मुझे प्रेम नही करते? का- + - अब तो