पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/१८५

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पत्थर-युग के दो वुत १७७ अभी आया । अभी।" और मैं चल देता हू, बाहर आदमी है, या हे है, जा रहे है । शाम का मुटपुटा है यह। मेरे काम के उपयुक्त ही वक्त है। चलो दत्त, अव तुम आज़ाद हो । हिम्मत करो। अव नौन तुम्ह रोक सक्ता है । तुम्हारा मददगार, सच्चा दोन तुम्हारी जेब में है। शोफर से मैने कह दिया है कि मेम माब को रिक्चर वत्म होने पर घर ले जाए। और मै गाडी स्टाट करके राय के घर या पहुचा। पंगे वराण्डे मे खडी थी। मैने मकेत मे पूटा, "क्या राय पर म है “जी हा," उसने कहा, "क्या वबर कर द" "मैं स्वय चला जाऊगा।" यौर में भारी-भारी पदम - पा ऊपर चला गया। राय ड्रेसिंग टेवल के सामने खडा वाल बना रहा था I TITRA एक तौलिया लपेटा हुअा था। वह गुमल परके निरमाया। सर, "राय, मै या पहुचा वह घूमकर खडा हो गया। भय ने उनसरा चेहरा पर हा गया। यह कहो, क्या तुम र रा र शादी करना तैयार हो ? क्या तुम उने और उसके बच्चे को पारान ग्रार दागे 7 "डरो मत, डरो मत रख सकोगे ?" लीजिए साहब, क्या दिलचस्प सवाल ने कर रहा ह । प्रभी पनी- मै रेखा को सगाई की अंगूठी पहनाकर ग्रापा है, और अभी पर वार कर रहा हूँ । मगर इसमे पाश्चय की वात क्या है । दुनिया न बनती दिलचस्पिया है। एक यह भी सही। "हा, राय, जवाब दो।" राय एकटक मेरी योर देख रहा है। एक गतानी नुमान न्या पर छा गई, वह कहता है "क्या रेखा ने अापने कुछ कहा है।' “सव-नुछ।" "सर, अच्छा ही है।" 11