पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/१९२

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, सुनीलदत्त मैने राय को गोली मारी है। विलकुल ठीक किया हे मने । मुझे इसका कोई पश्चात्ताप नहीं है, कोई अफमोस नहीं है। आप कह सकते है कि मैंने कानून को अपने हाय मे लेकर अच्छा काम नहीं किया। क्यो नहीं किया ? ऐसे ही अवसर होते है जब तेजस्वी जन कानून को अपने हाथ में लेते है, उन्हें लेना चाहिए। कानून न्याय नहीं है, व्यवस्था है, जो न्याय का स्थानापन्न है। उमका काम समाज का सतुलन कायम रखना है और इसीलिए कानून के लिए कभी कभी सत्य का, न्याय का उल्लघन करना और व्यवस्था का कायम रखना जरूरी हो जाता है। परन्तु व्यवस्था सामाजिक मर्यादा मे मम्बन्धित वस्तु है, चरित से सम्बन्धित नहीं। हो सकता है कि कही- वही व्यवस्था चरित्र की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाए और चरिन की श्रेष्ठता की अवहेलना कर दे। परन्तु वैयक्तिक दृष्टि से चरित्र ही की महत्ता है। वैयक्तिक सौष्ठव की दृष्टि से चरित्र को ही तेजस्वी पुष्प व्यवस्था पर महत्त्व देते है और ऐसी अवस्था मे कानून हाथो मे लेना ही पड़ता है। वेशक मने कानून को अपने हाथो में ले लिया। मैने राय को अपनी अन्तरात्मा की आवाज़ पर मार डाला। वह यादमी, जो घर की पवित्रता वो भग करता है, दूसरे की विवाहिता स्त्री को व्यभिचारिणी होने में नहायता देता है, व्यभिचारिणी बनाता है, उसकी कम से कम सजा मौत है । वह नमान के लिए एक भयकर पतरा है। वह एक हमी-सुशी ने को उन्ह अपने