पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/१९५

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पत्थर-युग के दो बुत घामो के साथ समाज के बीच । और दुनिया को देखने का अवसर दिया जाए कि रेखा के समान वासना का शिकार बननेवाली कमजोर मन की स्त्रियो को अन्त मे कैसे दिन देखने पड़ते है, उन्हे समाज से कटकर, समाज की विप-दृष्टि मे तिरस्कृत और दर्द-भरा असह्य जीवन व्यतीत करना पडता है-स्त्रीत्व के सब आशीर्वादो, सम्मानो, आनन्दो, मुरक्षाग्रो और पुण्यो से रहित। मैं समझता हू, रेखा के लिए यह सज़ा काफी है, जो उसे मैने नही- उसके नारी-जीवन ने दी है । परन्तु रेखा के लिए मैने जो सबसे बडी सजा दी है, वह यह कि मैं रेवा को अव भी उतना ही प्यार करता हू नितना सदा से प्यार करता रहा है। और उसे केवल अपनी धन-सम्पनि पोर प्रतिष्ठा ही नही, अपना वह असाधारण प्यार भी-जो अछूता और उनी । लिए था--दिए जा रहा हू, जिसका अनिर्वचनीय ग्रानन्द उमने मनुनम किया, परन्तु अव वह उसके जीवन के अन्त तक असह्य-दुमह दद पना रहेगा। -