पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/१९८

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रेखा प्राज माजन की विदाई का दिन है। झूल रहे है वे। मेरे माजन। मेरे Tण कन्हेया । देवो लोगो | देखो परी कुलवधुपो, भले पर की बहुप्रो, तुम भी देग तो अपनी बडी-बडी पाखो का सुफल ले लो। हा-हा, मने ही उन्हे उस झूने पर चढाया है, उनके प्यार का बदला काया है। कौन पौरत मेरे इस काम मे बरावरी करेगी। परी, वे झूल रहे हैं। गायो, गीत गायो। बडी भारी बरमात प्राई है। मान-भादो की झडी लगी है। काले-काले वादन उमड रहे है, गरज रहे है बदग। सावन में मब मजनी झलती है। ग्राम मेरे माजन झल रहे है । गाग्रो री गायो, चप क्यो हो। क्या सब मर गई । दुनिया मे इतनी पोरते हैं, पर में अकेली ही गा रही है। कोई मेरे मुर मे सुर नहीं मिलाती। क्यो? अरी मावन है, मावन क्या रोज-रोज माना है | गाग्रो, गानो मुलना मुलायो मुलना ग्रोह । सापन-भादो की यह कदी। टम बार बरमकर शायद फिर कभी न बरमेगी ये पावं। अच्छा वरमो, परमो। प्ररी परसो, एव इग्नो। मेरे साजन कल रहे है । लो प्यारे, भलो । मन मुम्ब मिल रहा है। पावे मुद गई है। बदन निढाल हो गया है। पाणी मूक निम्पद हो गए हैं। टीक, ठीक । ग्रानन्दातिरेक की यही नो पराकाष्ठा है। पर दम बार अकेले ही यह प्रानन्द किया । मुने यही छोड दिया । पौर प्रग