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पत्थर-युग के दो बुत
 

३४ पत्थर-युग के दो बुत कर रही थी कि उन्होंने मुझे अपने में समेट लिया है। इतने ही मे दत्तग्रा गए । वे नशे मे थे, पर आज अपेक्षाकृत होस हवास मे थे। राय के सामने भी और उनके जाने के बाद भी उन्होने मुझसे प्रेमा- लाप किया , पर उससे मुझे ज़रा भी खुशी न हुई, जरा भी मेरे मन मे उत्साह न जगा । काश, वे वेहोशी की हालत मे पाते । और राय? प्रोफ, मैं क्या कहने जा रही ह ? मेरी जवान टूट क्यो नही जाती ।। में मिट्टी के एक लोपडे की भाति उनके अक मे पड़ी रही, रात-भर । उनका प्रकपाश मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने मुझे जजीरो मे कस लिया है, गौर जेमे मेरा दम घुट रहा है। शराब मे यदि दत्त वुत्त न होते तो मेरी उम विगीत को वे प्रपश्य ही भाग जाते। परन्तु उस दिन तो वे कुछ पाय- चित मा कर रहे थे, अनुताप मा कर रहे थे। प्रेम भी जता रहे थे, पर वे गर पाते, उनसी सब चेप्टाए मुझे असह्य सी लग रही थी । मोर म मठमट मोने का बहाना बनाकर राय की उन ग्राखो की प्यास का नजारा देश रही थी, उममा तुतफ उठा रही थी। मुबह सब उन्ह ज्ञात दुमा कि मन इस बार किमी को निमन्त्रित ही नहीं किया तो वे बहुत विगटे । मैने भी मुहतोड़ जवाब दिया। लांडी नहीं है। मान वरीदकर नहीं लाई गई है । प्रत्याचार कव तक सह ग्रन्याय भी हो ग्रार दाट-फ्टकार भी । चोरी भी पीर मीनागोरी भी नहीं, म पर्दाश्त नहीं करूगी, मन यह ठान ली। क्न सन्नी ह दन का प्यार याया प्यार नही, मच्चा प्यार है। में न्वीकार करती ह-वे सचमुच मुझे प्यार करत है । म यह भी कह सकती ह नि दवर-उपर मरी औरतो की नाक-माफ करन की उनकी प्रादत नहीं है। उनमे यदि कोई दोष है तो यही किव गराब पीते है, मानामे अविर, गौर रात को देर तर घर से गैरहाजिर रहत है , मुग योनी उनकी प्रती ता में प्राव विठा बंटा रहना पडता है। सा मुन रानी पटा पा, पार उनले मग मन ना विन्द्र बिताणा न मर गया था। ग्रार सोनि मेरे मन न पार नी TT TH, फनी रहा, ? ,