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पत्थर-युग के दो बुत
 

पत्थर-युग के दो बुत . पर उग आते है और उसे जीवन मे कही का कही ले उडते है । ऐसा ही मैंने अपने जीवन मे देखा । मैंने कहा आपसे कि मैं पूर्ण स्वस्थ युवा था, और जब-जब मेरे अग मे कामोत्तेजना होती थी, मेरे श्वास तथा रक्त के प्रवाह मे अन्तर पड जाता था, यह मैं अनुभव करता था। भोर के तडके जव मैं उठता या तो ऐसा प्रतीत होता था कि शरीर के साथ सारी ही इन्द्रिया जाग उठी है। मैं देखता था कि तनिक सोचने से मस्तिष्क मे रक्ताभिसरण भर जाता था । रक्ताभिसरण जीवन मे कितना बहुमूल्य है, इसे सब लोग नही जानते-और भी एक बात है जिसे सब लोग नही जानते। जितनी अधिक मस्तिष्क की बडी शक्ति होगी, उतनी ही उत्तेजना अधिक होगी। इसलिए कामोत्तेजना जीवन के सब कामो से अधिक महत्त्वपूर्ण है। वह जितनी ही अविक होगी, उतना ही मस्तिष्क विकसित होगा। मनुष्य अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए जो न केवल उसके व्यक्तित्व मे सीमित है अपितु ब्रह्माण्ड-भर मे विस्तृत है, मस्तिष्क से बहुत काम लेता है । इसीसे मनुष्य का मस्तिष्क ससार के सब प्राणियो से वडा होता है। परन्तु यह एक गम्भीर तथ्य है कि मस्तिष्क को आराम की ज़रूरत है, पेशियो को परिश्रम की । कामोत्तेजना, जो पुरुषत्व की प्रतीक शक्ति है, जीवन की मर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और आनन्दवर्षक वस्तु है । आप चाहे जो भी समझें, पर मैं जब अपने जीवन के सबसे नाजुक और महत्त्वपूर्ण लक्ष्यविन्दु पर आ पहुचा हू तो मन की सब गुप्त-प्रकट वातें प्रकट करूगा । एक ही शब्द मे में कहना चाहता है कि जब मैं अपरि• सीम काम-वासना को शरीर मे भडका देसता या तो ऐमा अनुभव करता या कि जैसे ससार की बहुमूल्य मणि मैंने प्राप्त कर ली है। कोई कमजोर दिलवाला व्यक्ति उस वेग के धक्के को सह नहीं मकता या। मैं उसका निवारण नहीं कर सकता था। इतना ज्ञान मुझमे या कि मैं अम्वाभाविक प्रावेश से बचता गया । मुझे अपनी काम-वासना से प्रबन युद्ध करना पडा । मैं अपना ध्यान गरे कामो म बटाता और रात-दिन काम मे व्यस्त रहता, परन्तु काम-वासना उतने ही वेग में मेरे मम्मुन ग्रा