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पत्थर-युग के दो बुत
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पत्थर-युग के दो वुत - मैंने आपसे क्या अभी नही कहा था कि माया मेरे प्रति वाईस वरम वफादार रही। और वफादार ही क्यो । कहना चाहिए एक सच्ची जीवन- सगिनी-जिसमे प्रथम श्रेणी की समझदारी, विश्वसपात्रता, प्रात्मत्याग, साहस, हिम्मत और निष्ठा थी। इन सब बहुमूल्य सद्गुणो की कितनी बार परीक्षा हुई। कितने ऐसे क्षण आए कि जब पहाड भी डिग जाते है । पर वह नही डिगी। वाईस साल योडे नही होते। जब वह व्याहकर पाई थी तब वीम बरस की थी। बस, जैसी हमारी वेवी है। शकल और सूरत दोनो ही मे वेवी माया की एक सही प्रतिलिपि है। ऐसा ही चमकदार गुलावी उसका रग था, ऐसी ही बडी-वडी पाखें, होठो पर ऐसी ही प्राग्रही हेमो । पार प्यार का ऐसा ही अल्हड उन्माद-जनून और ग्रावेग । वेवी ही पी भानि वह अाग्रही स्वभाव की थी । जरा-सी वात पर ही वह गुस्सा हो उठती थी और वह तव तक ज़मीन-पासनान सिर पर उठाए रहती थी जब तर म उसके तलुए अपनी गोद मे लेकर बैठकर उन्हे न चमू । प्रार तव वह एक- वारगी ही खिलखिलाकर हँस पडती, गले से लटक जाती और उन पर बार के चरण चुम्वन के वदले हजार गर्म-गर्म चुम्बन देकर भी नहीं अघाती थी। ग्रोह, क्या कहते-कहते क्या कह गया । वेवक्त ये वाते वाद नाई, वीती बातें, जो अव कभी नही लोटेगी। और इनके साथ वे चादी की अन- गिनत रातें और सोने के दिन जो माया के ताय मेर वीने। पर अब उन्ह याद करने से क्या फायदा? जो बीत गया सो बीत गया। पर न रह तो यह रहा था कि जीवन के वाईस वरस कम नहीं होते । मैंने कहा न कि उस वक्त माया की उम्र वीस वरस वीपी और मेरी उन्बील दग्न की। हम दोनो ही गदहपचीसी के फेर मे । सो अव मापा दया तीन को पार कर रही है और मैं अडतालीस के पेट मे हूँ। हम दोनो हो नी जवानी खत्म हो चुकी, ज़िन्दगी का उनार बीत चुरा दिन वो दुपहरी न करो। ज़िन्दगी वो रगीनी अव वीती हुई कहानी हो गई।