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पत्थर-युग के दो बुत
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पत्थर-युग के दो वुत ७५ 1 खाई जाएगी, जश्न होगे। पर मै अपने चेहरे की झुरिया कहा छिपाऊगी? अपने ठण्डे, शान्त, तृप्त वातावरण मे उत्तेजना और गुदगुदी कहा मे लाऊगी? वाईस बरस तक कहना चाहिए पूरी जवानी-भर जिसे भोग जीवन को छककर, तृप्त होकर भोग चुकी, उसके लिए अव नये सिरे से आकाक्षा, उत्सुकता और उमग कहा से लाऊगी? इन सब बातो के लिए तो अब मेरी वेवी का काल था। अभी-अभी उन दिन तक हम दोनो- राय और मैं-उसके व्याह की बातचीत करते रहे है। उन वातो मे एक आनन्द, उछाह और आकाक्षा तो थी, पर अव भी क्या हम-राय और मैं-इस सुखद विपय पर फिर वात कर सकेगे? छि -छि , अब तो मेरा ही व्याह होगा। और शायद वेवी उसे अपनी ग्राखो से देखे भी । योग ।। शर्म के मारे मैं मर न जाऊगी ? किन्तु अब तो मै घर से बेघर होकर चौराहे पर या पड़ी हुई। सारे नभ्य ससार मे वाहर—वहिप्कृत, अकेली । न मैं किनी पीटर, मेरा कोई कही है। क्या कहकर अव मैं समाज मे अपना परिचय द नार मे हज़ारो गृहस्थ मुझे जानते है। हजारो मेरी प्रतिष्ठा करते थे। नगर एक प्रतिष्ठित नागरिक और ग्राफीसर है। उनकी प्रतिष्टा मे मेरा भी हिस्सा था। सम्भ्रात महिलाए उत्सवो मे, समारोहो में, चाव ने ग्रासर मुझसे मिलती थी। हँस-हँसकर पूछती पी-वेवी तैनी है ? राय ने है और मेरी ग्राले गर्व और प्रानन्द से फूल उठनी पी। पर अब उन वातो से क्या ? अव नो म किसी को मह दिखाना भी नहीं चाहती। घर- घर मेरी चर्चा है, वदनामी है। वे ही महिलाए, जो मेरे नम्मान ने नये विछाती थी, मुझे हरजाई कहकर मुह विचकाती है, घृणा करती है। -ने- भटके कोई मुझे देख लेती है तो उगली उठार कहती है-यही है वह आवारा औरत । वे मुझे आवारा कहती हैं, हरजाई रहती है, मेरे वन्ति पर कनक लाती है । परन्तु न जानती ह–मह एम म है। वन, न्न दु साहस किया है जो दूसरी तिरा नहीं करती-न्ही नर नानी। 17- चाप पति के व्यनिचार यो तनी हुई घर म बेटी नन बनी दी है। ? 4