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पत्थर-युग के दो बुत
 

१२ पत्थर-युग के दो वुन वैवाहिक जीवन की सबसे बड़ी सफलता 'वरावर की जोडी' है । मैं जानता हू कि सम्भोग की बात अश्लील और घृणास्पद समझी जाती है। और विवाह के समय सौ मे एक भी जोडा सभोग-सबन्धी समानता की बातो पर विचार नही करता । और इसका यह परिणाम निकलता है कि विवाह एक धोखे की टट्टी प्रमाणित होता है। विवाह के बाद या तो जल्द ही पति-पत्नी में विच्छेद हो जाता है, या कलह के बीज जमते हैं, या दोनो में से कोई एक या दोनो ही पर-स्त्रीगामी और पर-पुरुषगामी हो जाते है। ममय और सुविधा उनसे यह सब काम कराती है । कही पुरुप का अतिरेक होता है और वह वलात्कार की सीमा तक पहुच जाता है। तव वे अपार काट पाती है, और असाध्य रोगो की शिकार हो जाती है। कुछ सामा- जिक स्थिति ही ऐसी है कि स्त्री को पति की इच्छानो से विवश होकर दामी बनने को छोड दुसरा मार्ग ही नही रह जाता । वह यदि झगडा करती है तो पति अन्य पतिता स्त्रियो से अवैध सम्बन्ध स्थापित कर लेता है, तो एक नये क्लेश का कारण बन जाता है। में ऐसे बहुत-से पुत्पो को जानता है । उनमे अनेक प्रतिष्ठित और मुशिक्षित पुरुप भी हैं। निम्मदेर पुनप बलात् स्त्री से उसकी इच्छा और पावश्यकतानो की परवाह किए बिना सम्भोग नहीं कर सकता। यदि करे तो वह स्त्री के लिए एक क्लेश का कारण बन जाएगा। उममे स्त्री को किसी भी प्रकार का सुत्र प्राप्त न होगा, और वह विकट स्नायुरोगो का शिकार बन जाएगी। इसके अतिरिक्त ऐसी हालत मे-उनमे चाहे जितना प्रेम हो-उसमे विरक्ति के बीन उग ग्राण्गे । पोर उनमे वह गहरी एकता, मिकी दोना के लिए बड़ी यावश्यक्ता है, नहीं उतान्न हो मरती। मन दन मा वातो पर विचार किया है, टनकी लान-हानि पर दृष्टि दी है। इसी मे में प्रपा को काव मे रखता ह-रेवा की चि पोर इच्छा के विपरीत पनात्कार नहीं करता है। परल म एक स्वस्थ पुत्प है। पत्नी मे एकनिष्ट है। मेरे मन में तीनी नव जागरित होती है, तब मेरी मावश्याता की पति होनी चाहिए। वह पति रेवा नहीं करती। दमी मे मेर मन म यशका