पृष्ठ:पदुमावति.djvu/१००

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५२ पदुमावति । २ । सिंघल-दौप-बरनन-खंड। चउपाई। पुनि जो लागु बहु अंब्रित बारौ। फरौं अनूप होइ रखवारी ॥ नउ-रंग नौउँ सुरंग अँभौरी । अउ बदाम बहु सेद अंजौरी ॥ गलगल तुरुंज सदा-फर फरे। नारँग अति राते रस भरे ॥ किसिमिसि सेउ फरे नउ पाता। दारिउँ दाख देखि मन राता ॥ लागु सोहाई हरिफा-रेउरी । उनइ रही केला कइ घउरौ ॥ फरे तूत कमरख अउ नउँजी। राइकरउँदा बेरि चिरउँजौ ॥ संख-दराउ छोहारा डोठे अउरु खजहजा खाटे मोठे ॥ - दोहा। - . पानि देहि खंडवानौ कुहिँ खाँड बहु मेलि । लागी घरी रहंट कइ सौचहिँ अंब्रित बेलि ॥ ३४ ॥ नउ-रंग = नव-रङ्ग । नौउ = निम्बू । जंभौरौ = जम्बौर । गलगल = एक प्रकार का निम्बू। तुरूँज = तुरंज = निम्बू । सदा-फर = सर्वदा फरने-वाले । नारंग = नारङ्गी। सेउ सेव । दारिउँ == दाडिम = अनार । दाख = द्राक्षा = अङ्गर। हरिफा-रउरौ= हालफा- रेवडी। घउरी= घौर । नउजौ = लौंजी लोचौ । राइ-करउँदा = राय-करौंदा । संख-दराउ शङ्ख-द्रावक संख को गला देने वाला निम्बू , यह उदर रोग के लिये बडे काम का है। खजहजा = मेवे के वृक्ष (२८ दोहे को ६वौं चौपाई को देखो ) ॥ खंडवानी गडुश्रा = झारौ, यहाँ पर हजारा जिस से फूल, पेंड, सौंचते हैं। घरौ - छोटी छोटी गगरी। रहंट = चक्राकार जल निकालने का यन्त्र = एक प्रकार की पुरवट = आरघट्ट (संस्कृत में) ॥ पुनः (फिर) और जो बहुत अमृत ( के ऐसौ) बारी (बगौचा ) लगी हैं, मो अनुपम (उत्तम) फरौ हैं, और उन को रखवारी होती है। उन में नव-रङ्ग, सुरङ्ग और जम्बौर निम्बू हैं, और बदाम और बहुत भेद के, अर्थात् तरह तरह के, अञ्जौर हैं गलगल, तुरज ( तुरंज = निम्बू , इसे बिजौडिया कहते हैं, दवा में बहुधा काम आता है ), और सदा-फर फरे हैं, नारंग फरे हैं, जो रस भरे अति राते (खूब सुर्ख ) . हो गये हैं। किसमिस और सेव नये पत्ते से भरे फरे हैं। ( कोई नउ पाता से =