पृष्ठ:पदुमावति.djvu/१०९

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३६ - 8.] उधाकर-चन्द्रिका। जबरदस्त, चोर, और चाई उन नाँचों में मिले रहते हैं, अर्थात् ऊपर जो कह पाये हैं, कि कहीं कहीं अच्छी तरह से नांच कूद हो रहा है, वहाँ पर उसी नाँच में ये सब मिले रहते हैं। इस लिये जो कोई तिस हाट में सावधान रहता है, तिमी को निश्चय कर के गठरी बचती है ॥ ३८ ॥ चउपाई। पुनि आए सिंघल-गढ पासा । का बरनउँ जनु लागु अकासा ॥ तरहि कुरुम बासुकि कद पौठौ। ऊपर इँदर-लोक पर डौठी परा खोह चहुँ दिसि तस बाँका। काँपइ जाँघ जाइ नहिँ झाँका अगम असूझ देखि डर खाई। परइ सो सपत पतारहि जाई ॥ नउ पउरी बाँकी नउ खंडा। नउ-उ जो चढइ जाइ ब्रहमंडा ॥ कंचन कोट जरे कउ सौसा। नखतन्ह भरौ बौजु जनु दौसा ॥ लंका चाहि ऊँच गढ ताका। निरखि न जाइ दिसिटि मन थाका ॥ दोहा। हिअ न समाइ दिसिटि नहिँ जानउँ ठाढ सुमेरु । कहँ लगि कहउँ उँचाई कह लगि बरनउँ फेरु ॥४०॥ कुरुम = कूर्म = कच्छप । बासुकि = वासुकि-नाग । खोह = खन्धक । कउ = कद-उ = कई॥ फिर सिंघल-गढ के पास जो आए, (तो देखने से बुद्धि थकित हो जाती है)। उस का क्या वर्णन करूँ। (इतना ऊँचा है), जानों आकाश में लगा हुआ है॥ तले (तरहि) तो (वह) कूर्म और वासुकि के पौठ तक चला गया है, और उस के ऊपर देखने से इन्द्र-लोक पर दृष्टि पडती है, अर्थात् दूस की नौंव कूर्म और वासुकि के पौठ पर है, और ऊँचा इतना है, कि उस पर से इन्द्र-लोक देख पडता है। (कूर्म और वासुकि- नाग पृथ्वी के आधारों में से हैं। पुराणों में कथा है, कि कूर्म, वाराह, शेष-नाग, वासुकि-नाग, और दिग्गज, ये सब पृथ्वी को धारण किये हैं, जिस से यह नौचे को नहीं जाती। कभी कभी ये लोग जब बोझे से थक कर श्वास लेते हैं, तब भू-कम्प होता है)। तैसा कठिन (बाँका) उस गढ के चारो ओर खन्धक पडा है, कि झाँका नहीं जाता, -