पृष्ठ:पदुमावति.djvu/११९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सुधाकर-चन्द्रिका। तुरंग = घोडा। लोले = नीले रंग का घोडा, आज कल भी इसी नाम से प्रसिद्ध है (नौलो नौलक एवाश्व इति जयादित्य-कृते ऽश्ववैद्यके ) ॥ समुंद = समुद्र के फेन मा जिस घोडे का रंग हो, इसे आज कल कोई समंद कोई बदामी कहता है। हाँसुल = कुमैत-हिनाई, अर्थात् मेहदी के रङ्ग मा सब बदन हो, और चारो पैर कुछ काला लिये ॥ भवर भौरे का सा रंग, जिसे आज कल मुश्की कहते हैं ॥ किश्राह = ( कियाह ) जिस घोडे का रंग पके ताड के फल के ऐसा हो, (पक्वतालनिभो वाजी किया हः परिकीर्तितः-इति जयादित्य-कृते ऽश्ववैद्यके ) ॥ हरे = हरे रंग का घोडा, इस रङ्ग का घोडा दुर्लभ है नहीं मिलता। पुराण में कथा है, कि सूर्य रथ में हरे घोडे हैं। कवि ने प्रशंमार्थ लिख दिया है। कुरंग = कुलंग = लाखौरौ, जिस का रंग लाह के ऐसा हो, इसे नौला कुमैत कहते हैं ॥ महुअ = महुएं के ऐसा जिस का रंग हो ॥ गरर = इसे आज कल लोग गर्रा कहते हैं। जिस के एक रोएँ लाल, और एक सफेद, खिचडी हो ॥ कोकाह = कोका, सफेद घोडे को कहते हैं, (श्वेतः कोकाह इत्युक्तः इति जयादित्य-कृते ऽश्ववैद्यके ) । बुलाह = वोल्लाह, जिम के गर्दन और पूँछ के वाल पौले हाँ (वोल्लाहस्वयमेव स्यात् पाण्डुकेशरवालधिरिति हेम-चन्द्रः)। दून घोडों के लिये सन् १८८६ में छपा नं ० ५७४ वङ्गाल एशियाटिक सोसाइटी के अश्व-वैद्यक के तीसरे अध्याय के १००-११० श्लोक और टौका देखो ॥ तौख = तीक्ष्ण = तेज । तुखार = घोडा। चाडि = चण्ड = प्रचण्ड = बडे बली। बाँके वङ्क = टरै = कठिन । तरपहि = तडपहिँ = तडपते हैं। तवहिँ = तपहिं = तपते हैं, जैसे श्राग के ऊपर पैर पड जाने से, पैर को छन छन पटकते हैं। अगुमन = अगाडी = पहले । डोलहिँ = डोलते हैं चलते हैं। बाग=रास, जिसे पकड कर घोडे को हाँकते हैं, जो कि लगाम में लगाई जाती है, हिन्दुस्ताती सूत की, बिलायती चमडे को, होती है। (दूसौ बाग में जो घोडे को बाँधने के लिये डोरी लगा देते हैं, उसे बाग-डोर कहते हैं। उमाम = उच्छ्रास = यहाँ, घोडे के चलाने के लिये "है", ऐसा इशारा॥ साँस = श्वास, यहाँ दूशारा ॥ रिस = रोष से । लोह चबाहौं = चबाते हैं। भाँजहि = भाँजते हैं = फेरते हैं। मौस = शौर्ष = शिर ॥ उपराहौं = ऊपर ॥ रथ-वाह =रथ हाँकने-वाला = सूत = कोच-वान = गाडी-वान ॥ पलक = पलक भंजने में जो काल ॥ राज-द्वार पर घोडे बँधे हैं, उन के जैसे रङ्ग हैं, उन का क्या वर्णन करूँ ॥ कोई लोले और समुंद हैं, जिन की चाल को जग (जगत् के सब लोग) जानता है, लगाम। = ऊपर-हो