पृष्ठ:पदुमावति.djvu/१५७

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92] सुधाकर-चन्द्रिका। ७७ सदृश न नोचा न ऊंचा २४ । कान कोमस्त, पुष्ट और दोनों समान २५ । बाल चिकने, नौले और घुघुराले २६ । शिर चारो ओर से सुडौल २७। हथेली, शङ्ख, छत्र इत्यादि से युत २८। कलाई सुडौल और पतलौ २८ । बाहु खिले कमल से चमकौले २० । मणिबन्धन, जहाँ कङ्कण पहिना जाता है, कुछ नीचे की ओर दबा हुश्रा ३१ । हाथ कौ अङ्गुलियाँ पतलौ जिन के पोर सुडौल हाँ ३२ । योग के ग्रन्थों में, विशेष कर के गोरखनाथियों के ग्रन्थों में, और-हो महा-पुरुषों के बत्तीस लक्षण लिखे हैं, वे लक्षण स्त्रियों में भी होने से महा-भाग्यवती स्त्री कहाती हैं। उन बत्तीमाँ के नाम नीचे लिखे हैं । निरालम्ब १ । निर्धम २। निर्वास ३। नि:शब्द ४। ज्ञान-परीक्षा में ॥ निर्मोह ५ । निर्बन्ध है। निःशङ्क। निर्विषय ८। विवेक-परीक्षा में ॥ सर्वाङ्गीर । सावधान १० । सत्य ११ । सार- ग्राही १२ । विचार-परीक्षा में ॥ निःप्रपञ्च १३ । निस्तरङ्ग १४ । निईन्। १५ । निर्लप .१६ । निरालम्ब-परीक्षा में ॥ अयाचक १७ । अवाञ्छक १८। अमान १८ । स्थिर २० । सन्तोष- परीक्षा में ॥ शुचि २१ । संयमी २२ । शान्त २३ । श्रोता २४ । शौल-परीक्षा में ॥ सुहत् २५। भौतच २६ । सुखद २७। स्वभाव २८। सहज-परीक्षा में ॥ लय २८ । लक्ष्य ३० । ध्यान ३१ । समाधि ३२। शून्य-परीक्षा में॥ वनारस संस्कृत-कालेज के पुस्तकालय में गोरक्ष-कृत ग्रन्थ के उत्तरार्द्ध में ४४ पत्र में ये वत्तीसो लक्षण लिखे हैं ॥ इति सिंहल-हौप-वर्णनं नाम द्वितीयं खण्डं समाप्तम् ॥ २॥