पृष्ठ:पदुमावति.djvu/२१०

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पदुमावति । ७ । बनिजारा-खंड। [२-८३ - 1 उसी से निर्वाह कर लेता है, परन्तु भूखे निर्वाह नहीं होता ॥ जो आँख नहीं देखतौ वह अन्ध रहती है, अर्थात् नयन का गुण देखना है, उस गुण के न रहने पर भी आँख अन्धी रहती है। जिस मुख में वचन नहीं पाता, अर्थात् जो मुख नहीं बोलता, वह गूंगा रहता है। तात्पर्य यह, कि मुख का गुण बोलना जो है, उस के न रहने पर भी गूंगा मुख रहता है ॥ (इसी प्रकार ) जो कान नहीं सुनता, वह बधिर रहता है, अर्थात् सुनना गुण न रहते भी बहिरा कान रहता है। परन्तु (ऐमा नहीं होता, कि) निर्गुण पेट रहे, अर्थात् जैसे देखना, बोलना, सुनना जो गुण हैं उन के विना भौ आँख, मुख, कर्ण रहते हैं, और प्राणी का जीवन भी बना रहता है, उसी प्रकार ऐसा नहीं होता, कि भोजन करना जो पेट का गुण है, उस के विना पेट रहे, और प्राणौ का जीवन बना रहे ॥ नित्य फेरा कर कर ( इधर उधर घूम कर ) यह अत्यन्त बहु) दोषौ (दोष से भरा) वारंवार वा दार द्वार फिरता है, (परन्तु ) सन्तोषौ नहीं होता ॥ (राजन), सो (वही) पेट मुझे (अपने संग में ) ले कर ( भिक्षा ) मंगाता है, और भूख प्यास लगाता है। यदि ऐसा वेरी (पेट) न होता, तो किसी को किसी को अाशा रहतौ? अर्थात् यदि पेट न होता तो किसी को किसी को श्राशा (उम्मेद) न रहतौ, स्वतन्त्र हो कर सब कोई विहार करता, दूसौ के भरने के लिये लोग दूसरे को आशा करते हैं ॥ ८२ ॥ . ( चउपाई। सुअइ असौस दोन्ह बड साजू। बड परतापु अखंडित राजू ॥ भागवंत बिधि बड अउतारा। जहाँ भाग तहँ रूप जोहारा॥ कोइ केहु पास आस कइ गवना । जो निरास डिढ आसन मवना ॥ कोइ बिनु पूँछे बोलि जो बोला। होइ बोलि माँटी के मोला॥ पढि गुनि जानि बेद मति भेऊ। पूँछे बात कहइ सहदेऊ ॥ गुनी न कोई आपु सराहा। जो सो बिकाइ कहा पइ चाहा ॥ जउ लहि गुन परगट नहिं होई। तउ लहि मरम न जानइ कोई॥