पृष्ठ:पदुमावति.djvu/२३४

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१५४ पदुमावति । ६ । राजा-सुया-संवाद-खंड । घर घर पदुमिनि छतिस-उ जाती। सदा बसंत दिवस अउ राती ॥ जेहि जेहि बरन फूल फुलवारी। तेहि तेहि बरन सु-गंध सो नारी ॥ गंधरब-सेन तहाँ बड राजा। अछरिन्ह माँह इँदर बिधि साजा ॥ सो पदुमावति ता करि बारौ । अउ सब दौप माँह उँजिारौ॥ चहूँ खंड के बर जो ओनाहौं। गरबहि राजा बोलइ नाहौँ । दोहा। उअत सूर जस देखो चाँद छपइ तेहि धूप अइसइ सबइ जाहिँ छपि पदुमावति के रूप ॥ ७॥ पाहि कबिलासू = कैलास । जुग = युग । बहुरा = फिरा । छतिस-उ= छत्तीसो। राती =रात्रि । बरन = वर्ण = रङ्ग । फूल = फुल्ल = पुष्य । फुलवारी पुष्य-वाटिका। गंधरब = गन्धर्व । अछरिन्ह = अप्सरा-गण । इँदर = इन्द्र । बारी-बालिका कन्या । दीप = दीप वा दौया । उँजिबारी= उज्ज्वल । चह = चारो। ओनाही झुकते हैं । गरब = गर्व । उअत = उदय होते। सूर = सूर्य। चाँद = चन्द्र। धूप = धाम = तेज। पदुमावति = पद्मावती ॥ (शुक कहता है, कि) हे राजा, तिस (सिंहल-दीप) का क्या बर्णन करूँ। ( यही समझो, कि) सिंहल-दीप कैलास है ॥ जो (कोई) वहाँ गया, कि वह (सोई) भुलाया। युग बीत गया ( परन्तु वहाँ से फिर ) कोई न लौटा बहुरा॥ (कवि के मत से युग स्त्री-लिङ्ग है, इस लिये गद् का प्रयोग किया है। संहिता-कारों के मत से ४ ३ २०००० सौर वर्ष का एक युग होता है, और ज्यौतिष-वेदाङ्ग के मतानुसार एक युग पाँच मौर वर्ष का होता है। यही बात ५ ३ दोहे को टोका में भी है। (वहाँ) घर घर छत्तीसो जाति पद्मिनी हैं। (चार प्रकार की स्त्री होती हैं, हस्तिनी, शङ्खिनौ, चित्रिणी और पद्मिनी । दून में पद्मिनी सब से उत्तम और मनोहर होती हैं। दूसौ ग्रन्थ में जहाँ राघव चेतन ने बादशाह से पद्मावती का वर्णन किया है, तहाँ सब का लक्षण लिखा है। पद्मिनी सिंहल-द्वीप छोड और अन्यत्र कहीं नहीं उत्पन्न होती ॥ दश-विध, पञ्च-गौड, और पञ्च-ट्राविड । पञ्च-गौड में सारखत १ । कान्यकुब्ज २ । गौड ३ । मैथिल ४ । उत्कल ५ ॥ पञ्च-ट्राविड में, कार्णाटक १ । द्राविड २ । गुर्जर ३ । महाराष्ट्र ४ । - ब्राह्मण