पृष्ठ:पदुमावति.djvu/२६१

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१०३ - १०४] सुधाकर-चन्द्रिका। १७१ राजा ध्रुव सब दर्शकों के मन को चञ्चल कर भ्रान्त कर दिया है। (सो) देखें किस के लिये ऐसा संयोग एकट्ठा हुआ है, अर्थात् देखें कौन ऐसा भाग्यवान् है, जो ऐसे ध्रुव-राज से संयोग, अर्थात् मैत्रौ रूप से समागम कर एकत्र स्थित श्टङ्गार-रूपी अस्त्रों को लीला देखे ॥ खड्ग (नासिका का अग्र), धनुष (भौहैं), चक्र (श्राखाँ की पुतलियाँ ), और वाण (कटाक्ष), तिस तिलक-रूपी राजा के पास हैं। (दूस लिये उस राजा का) नाम जग-मारन है, अर्थात् वह राजा जगत् के प्राणी मात्र को मारने-वाला है। इतना सुनते-हौ (राजा रत्न-सेन) मूर्छित हो कर गिर पडा (और कहने लगा, कि हाय ये सब अस्त्र ) मुझ को कु-ठाव में भये, अर्थात् मुझ को मर्म स्थान हृदय में लग गये ( सो अब जौना कठिन है) ॥ १०३ ॥ चउपाई। भउहइ साव धनुख जनु ताना। जा सउँ हेर मारु बिख बाना ॥ ओही धनुख ओहि भउँहहिँ चढा। केइ हतिवार काल अस गढा ॥ ही धनुख किसुन पहँ अहा। ओहो धनुख राघउ कर गहा ॥ ओही धनुख राोन संघारा। ओहो धनुख कंसासुर मारा ॥ ओहौ धनुख बेधा हुत राहू। मारा ओहौ सहस्सर-बाह ॥ ओही धनुख मई ता पहँ चीन्हा। धानुक आपु बोझ जग कीन्हा ॥ ओहि भउहहिं सरि कोइ न जीता। अछरई छपी छपौं गोपीता ॥ दोहा। भउँह धनुख धन धानुक गगन धनुख जो उग्गवइ दोसर सरि न कराइ। लाजइ सो छपि जाइ ॥ १०४ ॥ भउहदू = भौंह =भू । माव = श्याम । बिख = विष । हतिधार = हत्यारा। किसुन = कृष्ण। अहा = आसीत् = था। राघउ राघव = राम-चन्द्र। गहा = ग्रहण किया। रापान रावण । संघारा = संहार किया। राह =रोह =रोहितक = एक प्रकार का मत्स्य। सहस्सर-बाह= सहस्र-बाहु। धानुक = धानुष्क = धन्वौ = धनुष चलाने-वाला ।