पृष्ठ:पदुमावति.djvu/२६३

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१०४] सुधाकर-चन्द्रिका। १७३ भोजनादि से सत्कार करो। जमदग्नि ने मन्त्र-प्रयोग से वर्ग से काम-धेनु को बुलाय सब का यथेच्छ सत्कार कर दिया । इस पर सहस्र-बाहु ने जमदग्नि से कहा, कि ऐसौ गाय राजाओं को चाहिए तुम इसे मुझे दे दो। मुनि ने बहुत समझाया, कि राजा यह स्वर्ग की रहने वाली गाय केवल मन्त्र-प्रयोग से कुछ काल के लिये यहाँ पर श्रा गई है, यह यहाँ भूमि पर नहीं रह सकती। निदान गाय न पाने पर राजा ने क्रोध से जमदग्नि को मार डाला। रेणुका पति-वियोग से व्याकुल हो विलपतौ पुत्र के पास सब वृत्तान्त सुनाने को गई। माता को पति-वियोगातुर देख परश-राम ने सहस्र बाहुओं को परशु से काट अपने नाना को मार डाला, और दृढ प्रतिज्ञा किया कि हम पृथ्वी में जितने क्षत्रिय हैं किसी को न छोड़ेंगे सब को मारेंगे, पृथ्वी में क्षत्रियों का निवर्वोज करेंगे ॥ कवि कहता है, कि मैं ने चौन्हा (पहचाना) है, कि वही (राम, कृष्ण, अर्जुन और परशु-राम का) धनुष तिस के (ता) पास (पहँ) है, (मो तिम धनुष से पद्मावती) आप धानुष्क अर्थात् अहेरौ हो कर जग ( के प्राणो) को बोझ कर लिया, अर्थात् जगत् के प्राणियों को भू-धनु और कटाक्ष-वाण से मार कर उन प्राणियों का बोझा, अर्थात् ढेर कर दिया | उस भौंह को समता में कोई नहीं जीता, अर्थात् किसी को भौंह पद्मावती के भौंह को बराबरी नहीं की, ( दुसौ से सरमा कर) अप्सरायें (वर्ग में जा कर) छिप गई और सु-रक्षिता देवी (मन्दिरों के भीतर अचला हो कर) छिपौं । उस धन्या पद्मावती धानुष्क के भाँह-रूपी धनुष को समता दूसरा (कोई धनुष ) नहीं करता है; (इसी से राजा इन्द्र का) आकाश में जो धनुष (कभी कभी पद्मावती भू-धनु की समता करने के लिये ) उगता है, वह ( उस भू-धनु के सामने अपने को तुच्छ समझ फिर) लज्जा से छिप जाता है। यहाँ कवि कौ उत्प्रेक्षा है, कि उस इन्द्र-धनुष में धू-धनु के ऐसी कहाँ कालिमा इसी लिये अपने को अधम समझ वह भौ छिप जाता है। इस प्रकार पृथ्वी पर के सब राम-कृष्णादि के धनुष और वर्ग का इन्द्र-धनुष सब पद्मावती के धू-धनुष से हार गये, इस लिये स्पष्ट सिद्ध हो गया, कि भू-धनुष अनुपम है। यदि पद्मावती को प्रकृति-रूपा चिच्छकि मानो, तो जब उस के एक भू-कुटी-विलास से जगत् की उत्पत्ति और लय होता रहता है, तहाँ भला उस भू-धनु को समता कौन कर सकता है । इस लिये दूस अर्थान्तर से भी कवि की उक्ति बहुत ही सु-युक्ति से भरी है ॥ १०४ ॥ . के -