पृष्ठ:पदुमावति.djvu/३२२

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२३२ पदुमावति । ११ । पेम-खंड । [१२६ - चउपाई। का भा जोग कहानी कथे। निकसु न घौउ बाजु दधि मथे ॥ जउ लहि आप हेराइ न कोई। तउ लहि हेरत पाउ न साई ॥ पेम पहार कठिन बिधि गढा। सो पड़ चढइ सौस सउँ चढा ॥ पंथ सूरि कर उठा अंकूरू। चोर चढइ कई चढ मनसूरू ॥ तुइँ राजा का पहिरसि कंथा। तोर-इ घरहि माँझ दस पंथा ॥ काम करोध तिसिना मद माया। पाँच-उ चार न छाडहिँ काया ॥ नउ सेंधइ जेहि घर मॅझिारा। घर मूसहिँ निसि कइ उँजिबारा ॥ दोहा। अजहूँ जाग अजाना होत अाउ निसि भोर । पुनि किछु हाथ न लागिह मूसि जाहिँ जब चार ॥ १२६ ॥ भा = अभूत् = भया = हुआ। कहानी = कथना = कथनौ = कथा। कथे = कथन से कहने से । निकसु = निःकमति = निकसता है। घौउ = हत= घो। बाजु = वर्जयित्वा विना। मथे = मन्थन से = मथने से = महने से। आप = अात्मा = स्वयम्। हेराद = हेराता है = हारयति । पाउ = पाता है। पेम = प्रेम । पहार = प्रहार = पहाड = पर्वत। सूरि= शूली = फाँसी। उठा - उत्थित हुआ। अंकूरू = अङ्कुर = अँखुत्रा । मनसूरू = मनसूर = सूफी मत-वाले मुसल्मानों का प्राचार्य । पहिरसि = परिदधामि = प्रदधासि = पहिरता है। कंथा कन्था = कथरी। तोर-दू = तेरे-हौ = तवैव । माँझ = मध्य । दस-दश। पंथा मार्ग। काम = अभीष्ट । करोध = क्रोध = कोह = गुस्मा । तिसिना = दृष्णा अभिमान । माया = ममत्वादि। छाडहिँ = छाडद् का बहु- वचन, छाडद् = छुडति = छोडता है = छाडता है। काया = काय = शरीर । नव। सेंध = सन्धि = सैंध। मंझिारा =मध्यालय = मध्य-स्थान । मूसहि = मूसद् का बहु-वचन, मूमद् = मूषति = मूमता है= चाराता है। निसि = निशि = रात्रौ =रात्रि में । उजिअारा= उज्ज्वलन = प्रकाश। जाग = जाग्रहि = जागो = सो कर उठो। अजाना = अज्ञानौ = अयानी = बे-समझ । भोर = (भूरिः = इन्द्रः, उस से उत्पन्न भौर) = प्रभात - सवेरा। पुनि = पुनः । किछु = किञ्चित् । लागिहद् = लगेगा = प्राप्त होगा। मूमि = मूस कर । जाहिँ = जादू का बहुवचन, जादू = याति: जाता है। 1 = पन्थाः

लालच

लोभ । मद नउ