पृष्ठ:पदुमावति.djvu/३३३

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१२६] सुधाकर-चन्द्रिका।

गन कर

a दोहा। रे पखेरू पंखौ जेहि बन मोर निबाहु। खेलि चला तेहि बन कह तुम्ह श्रापन घर जाहु ॥ १२९ । गनक = गणक = ज्योतिषी, जो किसी काम के लिये शुभ-दिन बताते हैं । गनि = गायित्वा विचार कर। गवंन = गमन = यात्रा, अर्थात् यात्रा का शुभ- दिन = मुहर्त्त= साइत । आजू- अद्य = आज। दिन = शुभ-दिन = मुहर्त = साइत । सिध= सिद्ध = पूर्ण = पूरा। काजू = कार्य = मनोरथ । पेम-पंथ = प्रेम-पय = प्रेम का मार्ग। घडी= घटौ समय। मरेखा =सु-लेख = समझा-दार = समझने के योग्य । कहाँ = क्व, वा कथम् । माँसू = मांस । कया = काय = शरीर। रकत = रक्त = रुधिर = लोह। आँसू = अश्रु = त्रास । भृत्त = भ्रम = गलती। चाल = चाल = चालन = चलाने को रौति, अर्थात् मुहर्त । पूंछ = पूछता है = पृचति। कालू = काल = प्राणियों का मारने-वाला। सती=महादेव को स्त्री और दच-प्रजापति कौ कन्या यहाँ सती के ऐसौ स्त्री, जो पति-वियोग से मृत-पति के शरीर के साथ चिता में बैठ कर भस्म हो जाय। बउरौ=वातुला = बौरहौ = पति-वियोग से पगली। पूंछह = पृच्छति = पूंछती है। पाँडे

पाण्डेय, यहाँ पण्डित । पदठि= प्रविश्य = पैठ कर। सईत = संयतते = सहेजती ई

यत्र से रखती है। भांडे =भाण्ड = वर्तन = पात्र । मर = मरने को = मरने के लिये। गंग-गति = गङ्गा-गति (गङ्गायां गतिः मोक्षः) = गङ्गा में मोक्ष। घर-बार= स्टह-द्वार = घर-दुार = घर इत्यादि। अंत = अन्त । परोय = पर का-दूसरे का। पखेरू = पक्षौ। पंखौ पचौ। निवारनिर्वाह। खेलिखेलयित्वा खेल कर। अपने । जाड = याहि ज्योतिषौ लोग गणना कर के कहते हैं, कि आज गमन नहीं है, अर्थात् आज यात्रा के लिये शुभ-दिन नहीं है, (मो राजन्) शुभ-दिन ले कर चलो, अर्थात् माइत से यात्रा करो, (जिस में ) कार्य सिद्ध हो ॥ (कवि कहता है, कि) प्रेम-पथ में (जो चलने लगता है, वह) दिन घडी नहीं देखता है, अर्थात् श्राज शुभ वा अशुभ दिन है, दूस का कुछ भी विचार नहीं करता। (क्योंकि) जब समझने के योग्य हो, तब तो (दिन घडौ को) देखे (प्रेम-रस पान से तो बे-खबर हो गया ई)। (मो) जिस को तनु में प्रेम है, अर्थात् प्रेम समाय गया है, (फिर उस की) शरीर में कहा परावा प्रापन -