पृष्ठ:पदुमावति.djvu/३६०

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२५४ पदुमावति । १२ । जोगौ-खंड । [१३३ चउपाई रोअहिं नाग-मती रनिवार। तुम्ह कंत दोन्ह बन-बास्त्र । अब को हमहिं करिहि भोगिनौ। हम-हूँ साथ होब जोगिनी ॥ कई हम लावहु अपनइ साथा। कइ अब मारि चलहु सइँ हाथा ॥ तुम्ह अस बिछुरइ पौउ पिरौता। जहवाँ राम तहाँ सँग सौता जब लहि जिउ सँग छाड न काया। करिहउँ सेव पखरिहउँ पाया। भले-हि पदमिनी रूप अनूपा । हम तइँ कोइ न आगरि रूपा ॥ भवइ भलहिँ पुरुखन्ह कइ डौठौ। जिन्ह जाना तिन्ह दोन्ह न पौठौ ॥ दोहा। - देहि असौस सबइ मिलि तुम्ह माथइ निति छात । राज करहु गढ चितउर राखहु पित्र अहिवात ॥ १३३ ॥ रोहि = रोअदू (रोदिति ) का बहु-वचन । नाग-मती = रत्न-सेन को प्रधान पट्ट- रानी। रनिवासू = राज्ञी-वाम = रनिवास = अन्तःपुर, यहाँ अन्तःपुर में रहने-वालौं और रानियाँ। कंत कान्त = मनोरम पति। बन-बासू वन-वास। को = कः = कौन। करिहि = करेगा। भोगिनौ = भोग जिस को हो, अर्थात् भोग करने-वाली। साथ = मार्थ = सङ्ग। होब = हाँगी। जोगिनौ = योगिनौ = योगिन। कद् = को = या तो। लाव = लगावो । अपनदू = अपने। मारि = मारयित्वा = मार कर। मई = से। बिकुरद् विच्छडति = विकुडता है। राम= अयोध्या के राजा, जगत्प्रसिद्ध रावण-संहार-कर्ता। मौता=जो मौत, अर्थात् हल के श्रय से भूमि जोतने को वेला उत्पन हुई, मिथिलेश जनक को मानौ हुई पुत्री, जो रामायण की कथा से जगत्प्रसिद्ध है। करिहउँ= करूंगी। सेवा = टहल। पखरिहउँ= पखारूंगी = पखारद् (प्रक्षालयति) का भविष्यत्-काल। पाया = पाद = पैर। पदुमिनी = पद्मिनी = पद्मावतो। अनूपा = अनुपमा । तद् = ते = से । कोदू = कोऽपि पुंलिङ्ग में, यहाँ कापि = कोई । श्रागरि = अग्रा = श्रेष्ठा = श्रागरी = बढ कर। रूपा = रूप में । भवद् = भ्रमति = घूमती है। पुरुखन्ह = पुरुख (पुरुष) का बहु-वचन । डौठौ = दृष्टि। जिन्ह = जिन्हें यान् = जिन को। ( जानाति) का भूत-काल। तिन्ह = तिन्हें = तान् = तिन के प्रति। दोन्ह = देव (ददाति ) जाना=जान